शरीर का वास्तविक उपयोग

वक्ता: ऋद्धि सिद्धि माँगो नहीं, माँगो तुम पै येह।

निसि दिन दर्शन साधु को, प्रभु कबीर कहुँ देह।।

इसी के साथ कुछ अन्य पंक्तियाँ भी हैं

एह अगन बिरहों दी जारी, कोई हमरी तपन निवारी।

बिन दर्सन कैसे तरिये, हुण की करिये।।

दोनों ही उदाहरणों में दर्शन शब्द आया है। कबीर, बुल्ले शाह दोनों ने एक साझे शब्द का प्रयोग किया है, किसका?

(सभी एक साथ): दर्शन

वक्ता: दर्शन का। तो सवाल ये है कि ये दर्शन क्या है? पता कैसे चले कि दर्शन हो रहा है? दृष्टि। दर्शन माने देखना। देखने के लिए क्या चाहिए? दृष्टि। कौन है साधु? साधु वो जिसके सामीप्य में दिखाई देने लग जाए। साधु का दर्शन करते हो और साधुता दृष्टि बन जाती है। साधु कौन? जिसके जब करीब हो, तो दिखाई देने लग जाए। साधु कौन? जिसके जब करीब हो तो आँखों में दर्शन की सामर्थ्य आ जाए। ये मत कहना कि साधु का दर्शन किया। इसको ऐसे कहना कि — बात को पकड़ो ध्यान से — जिसके समीप दर्शन कर सको, वो साधु है। साधु का दर्शन नहीं होता। इसका प्रमाण ये है कि यदि साधु का दर्शन हो पाता, तो साधुओं का दर्शन सबको हो जाता। पर साधु आते हैं और चले जाते हैं, क्या दिखाई देते हैं किसी को? क्या दर्शन हो पता है? हमारे बीच से कितने साधु संत चले गए, हमारे बीच से कितने बुद्ध, कृष्ण, महावीर चले गए हमें दिखाई दिए क्या? तो साधु का दर्शन नहीं।

जिसकी समीपता में तुम दर्शन के काबिल हो जाओ वो साधु है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org