शराब से मुक्ति

हर चीज़ से मुक्ति मिल जाती है इस संसार में। बस होता ये है कि इंसान एक तरह की शराब छोड़कर दूसरे तरह की शराब पीने लग जाता है। तो शराब से मुक्ति चाहिए, तो मिल जाएगी।

‘मुक्ति’ चाहिए क्या? ये दोनों बहुत अलग-अलग बातें हैं।

शराब से मुक्ति चाहिए, बिलकुल मिलेगी। अ-शराब से बी-शराब पीने लग जाओ, हो सकता है वो समाज स्वीकृत हो, नैतिक शराब हो। उससे भी अगर मन भर जाए, तो अ-शराब और ब-शराब के बाद, स-शराब की ओर चले जाओ। उससे भी ऊब जाओ, तो फ़िर कुछ और, फ़िर कुछ और। मुक्तियों के सिलसिले-दर सिलसिले हैं।

‘मुक्ति’ मात्र अलग बात है।

शराब से मुक्ति एक चीज़ है, और ‘मुक्ति’ मात्र अलग चीज़ है।

‘मुक्ति’ मात्र क्या है?

‘मुक्ति’ मात्र है — उसपर हँसने लग जाना, जो शराब माँगता है।

आज वो शराब माँगता है, कल वो कुछ और माँगेगा। जो वस्तु माँगी गई है, वो बदल गई है, माँगने वाला तो नहीं बदला न? आज वो शराब माँग रहा था, कल कुछ और माँगेगा, परसों वो कुछ और माँगेगा। तो सतह-सतह पर मुक्तियों के दौर चलते रहेंगे। व्यक्ति कहेगा, “जान बची तो लाखों पाए।” फिर वो कहेगा, “चलो इससे छूटे।” फ़िर वो कहेगा, “चलो, वहाँ बचे।” भीतर ही भीतर, वो, जिसको किसी-न-किसी नशे से लिप्त रहना है, वो लिप्त रहा रहेगा।

‘मुक्ति’ तब है, जब उसके बचकानेपन को, उसकी व्यर्थता को देख लो।

उसका पक्ष लेना छोड़ दो, उसे गंभीरता से लेना छोड़ दो।

उसकी उपेक्षा करने लग जाओ।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org