व्यर्थ चीज़ों को जीवन से कैसे हटाएँ?

जब आत्मा के निम्न और उच्च पहलुओं का मंथन किया जाता है, तो उससे ज्ञानाग्नि उत्पन्न होती है।जिसकी प्रचंड ज्वालाएँ हमारे भीतर के अज्ञान-ईंधन को जलाकर राख कर देती हैं।

~ आत्मबोध, श्लोक ४२

आचार्य प्रशांत: जब आत्मा के निम्न और उच्च पहलुओं का मंथन किया जाता है, तो उससे ज्ञान-अग्नि उत्पन्न होती है।

‘निम्न पहलु’ क्या है आत्मा का? और आत्मा का ‘उच्च पहलु’ क्या है?

आत्मा का ‘उच्च पहलु’ है विशुद्ध आत्म ही। और आत्मा का ‘निम्न पहलु’ क्या है? अहंकार। आत्मा बिन्दु मात्र रहे, तो इसमें उसकी विशुद्धता है। ये उसका ‘उच्च पहलु’ हो गया। और आत्मा अहंकार बनकर फैल जाए, मलिन हो जाए, दोषपूर्ण हो जाए, तो ये अहंकार है।

श्लोक कह रहा है कि –

जीवन को साफ़-साफ़ देखकर के जब तुम समझने लगते हो कि कौन-सा काम तुम्हारी सच्च्चाई से निकल रहा है, और कौन-सा काम तुम्हारी कमज़ोरी से, या तुम्हारे डर से, या तुम्हारे लालच से निकल रहा है, तो उससे एक आग पैदा होती है, जो जीवन की सब अशुद्धताओं को जला देती है।

जो जीवन में हटने योग्य है, वो तभी तो हटेगा न जब पता चलेगा कि वो कोई नीचे, निकृष्ट, हेय चीज़ है। जो नीची चीज़ भी है, वो जीवन में ये बोलकर थोड़े ही बनी रहती है कि वो नीची है। जीवन में जो कुछ भी निम्न है, नीचा, वो भी तो यही कहकर बसा हुआ है न कि -“मुझमें भी दम है, मेरी भी कोई बात है, कोई शान है, कोई मूल्य है, कोई ऊँचाई है।” वो भी अपनी शेखी तो बघार ही रहा है — “मैं भी कुछ हूँ ।”

आदि शंकर कह रहे हैं, “साफ़ देख लो क्या है जो वास्तव में कीमती है, और क्या है जो बस कीमती होने का ढोंग कर रहा है। ये देख लोगे तो आग पैदा होगी जो जीवन के सब कचरे को जला देगी।”

अगर जीवन में उलझन है, दुःख है, तो देखो कि क्या कर रहे हो। शक्ति कहाँ से आएगी? तुम्हारा दुःख ही तुमको शक्ति देगा ।

परेशान आदमी को दौड़-धूप करते देखा है न? कि नहीं? बल्कि जो परेशान होता है वो और ज़्यादा दौड़-धूप करता है। उसको शक्ति कहाँ से मिलती है? परेशानी से। परेशान आदमी जो दौड़-धूप कर रहा है, उसको दौड़-धूप की ताकत कहाँ से मिल रही है? परेशानी से।

तो जीवन में अगर परेशानियाँ हों तो उन परेशानियों को ही ताकत के रूप में इस्तेमाल करो। कहो, “परेशानी है, साफ़-साफ़ देखना पड़ेगा कि बात क्या है। अगर परेशानी है तो मुझे साफ़-साफ़ देखना पड़ेगा कि बात क्या है।”

प्रश्न: आचार्य जी, सांसारिक जीवन जीते हुए अनासक्त कैसे रहें?

आचार्य प्रशांत: हम कभी आसक्त होने भर के लिए थोड़े ही आसक्ति विकसित करते हैं। मैं…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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