व्यर्थ चीज़ों को जीवन से कैसे हटाएँ?
एवमात्मारणौ ध्यानमथने सततं कृते। उदितावगतिज्वाला सर्वाज्ञानेन्धनं दहेत्।।42।।
अर्थ:
जब आत्मा के निम्न और उच्च पहलुओं का मंथन किया जाता है, तो उससे ज्ञानाग्नि उत्पन्न होती है। जिसकी प्रचंड ज्वालाएँ हमारे भीतर के अज्ञान-ईंधन को जलाकर राख कर देती हैं।
~ आत्मबोध, श्लोक ४२
प्रश्न: आचार्य जी प्रणाम। ये अग्नि कैसे जले जिसमें सारा अहंकार जो सिर चढ़कर नाच रहा है, ख़ाक हो जाए? कृपया मार्गदर्शन करें। नमन।
आचार्य प्रशांत जी: आशा जी (प्रश्नकर्ता) , श्लोक स्वयं बता रहा है कि वो आग कैसे जलती है। जब आत्मा के निम्न और उच्च पहलुओं का मंथन किया जाता है, तो उससे ज्ञान-अग्नि उत्पन्न होती है।
‘निम्न पहलु’ क्या है आत्मा का? और आत्मा का ‘उच्च पहलु’ क्या है?
आत्मा का ‘उच्च पहलु’ है विशुद्ध आत्म ही। और आत्मा का ‘निम्न पहलु’ क्या है? अहंकार। आत्मा बिन्दु मात्र रहे, तो इसमें उसकी विशुद्धता है। ये उसका ‘उच्च पहलु’ हो गया। और आत्मा अहंकार बनकर फैल जाए, मलिन हो जाए, दोषपूर्ण हो जाए, तो ये अहंकार है।
श्लोक कह रहा है कि –
जीवन को साफ़-साफ़ देखकर के जब तुम समझने लगते हो कि कौन-सा काम तुम्हारी सच्च्चाई से निकल रहा है, और कौन-सा काम तुम्हारी कमज़ोरी से, या तुम्हारे डर से, या तुम्हारे लालच से निकल रहा है, तो उससे एक आग पैदा होती है, जो जीवन की सब अशुद्धताओं को जला देती है।