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वो तुम्हें शर्मिंदा करके तुम्हें तोड़ते हैं

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, आपने कहा था स्टील डिटरमिनेशन (दृण निश्चय) के बारे में। मुझे ये जानना था कि इसका स्रोत क्या है? क्योंकि नहीं होता है सब में आप ही ने कहा था। बहुत ही कुछ लोग होते है जिनमें आप देखते होंगे। लेकिन मैं ये नहीं मान सकती अभी कि नहीं हो सकता मेरे में वो स्टील डिटरमिनेशन*। और कभी-कभी दिखता भी है किसी-किसी मामले में लेकिन अधिकतर मामलों में नहीं दिखता उतना दृढ़ निश्चय। उदाहरण के लिए हाल ही में मैं एक विंटर ट्रैक पर गई थी उत्तराखंड में, शून्य से नीचे तापमान पर। और मैंने अपना भार खुद लेकर ट्रैक किया। और मुझे काफ़ी गर्व महसूस हुआ। लेकिन तब मैं आश्चर्य करने लगी कि ये दृढ़ संकल्प मेरे सामान्य जीवन में क्यों नहीं चलता। जैसे व्यवसाय में, कोई शौक में, कोई रचनात्मक प्रयास हो गया, कुछ भी नया सीखना होगा वहाँ पर क्यों नहीं आता ये दृढ़ संकल्प? क्या अंतर था? थोड़ा-बहुत मैंने सोचने का प्रयास किया कि ठीक है वहाँ पर एक गाइड था, एक सक्षम गाइड था। एक लक्ष्य था कि अच्छी ऊँचाई थी। तो शायद बातें स्पष्ट थी इसलिए हो गया। हालाँकि ऐसा नहीं है कि उस लक्ष्य से मुझे प्यार था या कुछ। तो मुझे समझ नहीं आता कि क्या अंतर है उसमें और सामान्य जीवन में?

आचार्य प्रशांत: वहाँ पर बेशर्म होना आसान था। बात ये नहीं है कि वहाँ एक गाइड था, बात ये है कि वहाँ पर एक ही गाइड था। संकल्प की आप बात कर रहे हैं, दृढ़ संकल्प के साथ जो चीज़ चलती है उसकी आपने बात नहीं करी न। दृढ़ संकल्प के साथ जो चीज़ चलती है वो है सौ हार, सौ बार हारना पड़ता है। समाज के बीच में आप का संकल्प इसलिए टूट जाता है क्योंकि आप…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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