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वो कैसे पाऊं जिससे सच्चा प्यार है

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, हम हमारा सच्चा प्यार, हमारा सच्चा व्यवसाय कैसे पाएँ? पापा ने कह दिया, “बी.टेक. कर लो, अच्छा होता है,” तो हम बी.टेक. करने आ गए। हर कोई अमीर बनना चाहता है, हर कोई अपनी ख़्वाहिशें ही पूरी करना चाहता है। पर ये हमारा सच्चा प्यार नहीं है।

कैसे ढूँढें सच्चा प्यार?

आचार्य प्रशांत: कोई ज़रूरत ही नहीं है ढूँढने की। क्या तुम्हें अपने चेहरे को ढूँढने की ज़रूरत है? तुम्हारे पास वो है ही। वो है ही। देखो, खोजा तो उसको जाता है जो खो गया हो। जो खोया नहीं है, क्या उसे खोजा जा सकता है?

“यदि ये मेरा सच्चा प्रेम है, तो क्या ये कभी-भी खो सकता है? क्या मैं उसे एक क्षण के लिए भी भूल सकता हूँ, अगर वाक़ई उस चीज़ से मुझे सच्चाई से प्रेम है? मैं उसे नहीं खो सकता, वो है। वह सिर्फ़ कई विचलनों के प्रभाव में है। मैं उसके प्रति ध्यानस्थ नहीं हूँ।”

बात समझ रहे हैं?

फिल्मों में दिखाते हैं, किसी ने चश्मा पहन रखा है और वो पूरे घर में चश्मा खोज रहा है। ये देखा है आपने? कॉमेडी हो जाती है। चश्मा पहन रखा है और पूरे घर में खोज रहा है। क्या चश्मा खो गया है? वो खोया नहीं है, बस ध्यान की कमी है। यदि ध्यान रहेगा, तो जल्दी से ढूँढ मिलेगा कि वो वहीं है। और चश्मा तो फिर भी बाहरी चीज़ है।

आप पूछ रहे हो, “सच्चा प्रेम कैसे ढूँढें?”

वो तो और ज़्यादा भीतर बैठा हुआ है, वो खो कहाँ गया है। ये केवल विकृतियों से आगे, संस्कारों से आगे, प्रभावों से आगे है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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