वो कहते हैं धर्म ने बर्बाद किया भारत को

हम भूल ही जाते हैं कि हम जंगली जानवर हैं। हम भूल ही जाते हैं कि हम पशु मात्र हैं।

कई लोगों का अपने बारे में बड़ा गरिमापूर्ण ख़्याल है। वो सोचते हैं कि हम तो पैदा ही होते हैं बड़े पाक साफ़; हम तो पैदा ही होते हैं बड़े समझदार। वो तो बाद में धर्म आकर के हमको मैला-कुचैला, कंडीशंड कर देता है।

साहब, हम उतने ही जंगली हैं जितना जंगल का कोई जानवर।

अंतर बस ये है कि हम जंगल के जानवर से कई ज़्यादा खतरनाक हैं क्योंकि अपनी जंगली वृत्तियों को रूप, आकार, अभिव्यक्ति देने के लिए हमारे पास बुद्धि-रूपी हथियार है। वृत्ति हमारी बिल्कुल वही है जो जंगली अजगर की है, सांप की है, किसी भी हिंसक पशु, किसी दरिंदे की है।

बस वो ज़रा कम खतरनाक हैं क्योंकि उनके पास बुद्धि उतनी ज़्यादा नहीं है। उनको लालच होता भी है तो इतना ही कि किसी को मार-काट के अभी खा जाओ। लालच उनका देह तक सीमित है। हमारे पास क्योंकि बुद्धि है तो इसलिए हमारे लालच की कोई सीमा नहीं। हम बहुत दूर का लालच करते हैं। ठीक वही मूल शक्तियाँ हैं।

मैं बार-बार वृत्ति कहूँगा, आप अटक जाते हैं, आप कहते हैं वृत्ति माने क्या होता है? तो इसलिए मैं कह रहा हूँ ‘ताकत’। ठीक वही मूलभूत ताकत जो जंगल के किसी जानवर को संचालित करती है, वो हमें भी संचालित करती है।

हमें लगता भर है कि हमारे दस-पचास-सौ अलग-अलग तरह के उद्देश्य हैं। वास्तव में हमारे उद्देश्य भी वही हैं जो किसी शेर-चीते-गीदड़-सियार के होते हैं।

जानते हैं मूल ताकत क्या है प्रकृति की? — कामवासना और शरीर का संरक्षण। इसी का खेल जंगल में भी चलता है और इसी का खेल हमारे घरों में भी चलता है।

हम कुछ भी कर रहे हों, उसके पीछे छुपी हुई जो हमारी मनसा होती है, वो मनसा जंगली ही होती है। वो मनसा या तो ये होती है कि मुझे तमाम तरीके के सुख मिल जाऐं, या वो मनसा ये होती है कि किसी तरीके से मुझे अपनी जेनेटिक सामग्री को आगे बढ़ाने का कोई तरीका मिल जाए (कामवासना), आप समझ रहे हैं?

इसी मनसा के तमाम तरीके के अलग-अलग नाम होते हैं, अलग-अलग व्यवस्थाएँ होती हैं, और ये मनसा ख़ासतौर पर उन लोगों को पूरी तरह संचालित करती है जिनका ‘धर्म’ से कोई लेना देना नहीं।

आदमी अगर अपनी ही बुद्धि का शिकार नहीं हो गया है आजतक, अगर आदमी किसी तरीके से थोड़ी भी शांति अनुभव कर पाता है, अगर आदमी, आदमी का ही गला काटकर उसका खून नहीं पी रहा है, अगर आदमी में किसी भी तरह के उच्चतर मूल्य हैं, तो वो इसलिए नहीं हैं कि आप आदमी की देह लेकर पैदा हुए हो, वो इसलिए है कि आपके ऊपर संतों और ऋषियों का प्रभाव है।

ये बात कृपा करके स्वीकारें।

और उन लोगों ने, जिन्होंने आपको जानवर से इंसान बनाया, उनके प्रति ज़रा सम्मान रखा करें।

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant