वैराग्य संसार से नहीं, अपनी हरकतों से होता है
इस विस्तृत संसार से कभी सुख नहीं मिल सकता क्योंकि इसमें जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे मरने के लिए ही उत्पन्न होते हैं और जो मरते हैं, वे उत्पन्न होने के लिए ही मरते हैं, उनको कुछ भी सुख नहीं मिलता।
— योगवासिष्ठ सार
प्रश्नकर्ता: ‘उत्पन्न होने के लिए ही मरते हैं’ का क्या आशय है?
आचार्य प्रशांत: मरते नहीं न पूरा, रिचार्जिंग पर जाते हैं। हमारी मौत थोड़े ही होती है, हमारा तो ऐसा होता है कि एक बार को जितनी बैटरी लेकर आए थे, वो चुक गयी, तो फिर थोड़ी देर के लिए मोबाइल बंद हो जाता है और वो लग जाता है रिचार्जिंग…