वैदिक साहित्य में यज्ञ को महत्वपूर्ण क्यों बताया गया है?

आचार्य प्रशांत: श्लोक संख्या ५ है, प्रथम मुण्डक, द्वितीय खंड से, “जो पुरुष यज्ञ में आहुतियाँ देता है यथासमय, अनुशासन का पालन करता है, उसे सूर्य की किरणें वहाँ ले जाती हैं जहाँ देवताओं का एकमात्र स्वामी इंद्र निवास करता है।”

बात बहुत सीधी है। यज्ञ का अर्थ होता है, “अपने सारे कर्म, जो भी कुछ है मेरे पास, उसको मैं आहुति दे रहा हूँ अपने परम लक्ष्य के प्रति। मेरा जो भी…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org