वृत्ति नहीं, विवेक
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। एकलव्य की कहानी सुनकर बड़ा दुःख होता है कि द्रोणाचार्य जैसा स्वाभिमानी और श्रेष्ठ गुरु भी अपने स्वार्थ और पक्षपात के चलते श्रद्धावान एकलव्य से अन्याय करता है। एकलव्य इस अन्याय के प्रति आदर प्रकट करते हुए अपना अँगूठा देकर भी गुरु के प्रति श्रद्धा से भरे रहे। मेरी दृष्टि में एकलव्य का आदर ज़्यादा है।
मैं भी इसी तरह की घटनाएँ कॉर्पोरेट जगत में रोज़ देखता हूँ, जहाँ पक्षपात की वजह से प्रतिभाशाली एम्प्लॉइज़ (कर्मचारियों) के विरुद्ध साज़िशें होती हैं। जो प्रतिभाशाली एम्प्लॉई हैं, वो अपने काम को ज़्यादा प्राथमिकता देते हैं, न कि अपने बॉस इत्यादि की चापलूसी को। लेकिन उनके…