वृत्तियों का बहाव

प्रश्नकर्ता: एक वृत्तियों का बहाव होता है तो वो वाला हमारा है। वो चलता रहता है उसको देखना या उसको रोकना भी तो एक एक्शन हुआ ?

आचार्य प्रशांत: देखो, जितने भी फ्लोज़(बहाव) हैं, इनको रोकना या देखना, तुम जितनी भी इनके बारें में बातें करोगे उन सारी बातों में यह भाव निहित रहेगा कि मैं कुछ और हूँ और मैं इसको रोक सकता हूँ, इसको सुधार सकता हूँ, इसकी दिशा बदल सकता हूँ। यह सारी बातें उसमें रहेंगी। इतना अगर जान ही गए हो कि वृत्तियों का बहाव है तो बहुत है। यह मत पूछो की इसका करना क्या है? रोकना है, मोड़ना है, बंधना है, ख़त्म करना है या क्या करना है? मत पूछो। जैसे अभी जाने हो ना वैसे ही बस जानते रहना।

हम सवाल तीन कदम आगे का करते हैं। हम कहते हैं हमें पता चल गया है अब बताओ इसका करें क्या? करने के तीन विकल्प हैं — अ.ब.स. क्या करें? जब वो बहाव अपने उत्कर्ष पर होता है उस समय वो तीन विकल्पों की बात तो छोड़ दो, यह जो जानना है यह भी खत्म हो जाता है। तो जानने के बाद करना क्या है वो तो दूर की कौड़ी है। जानना ही खत्म हो जाता है। तो बस जानते रहना। जिस हालत में अभी प्रश्न पूछ रहे हो, उसी हालत में रहना। हमारे साथ, थोड़ा सा खेल इस बात से ख़राब हो जाता है क्योंकि भीतर से आपका कोई ताल्लुक नहीं रहा।हम जो भी रहें हैं वो पूरी तरह से बाहरी रहें हैं इसीलिए इस माहौल को भी हम बाहरी बना लेते हैं। इसको भी हम बस एक माहौल जैसा ही ले लेते हैं और अगर यह माहौल है तो माहौल तो थोड़ी देर में ख़त्म हो जाना है। अगर यह बाहरी चीज़ है, तो जो कुछ भी बाहरी है वो थोड़ी देर में हट जानी है। थोड़ी देर में सत्र समाप्त हो जाएगा तो उसके साथ तुम्हारा यह प्रश्न…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org