वृत्तियों का दृष्टा बनें या दमन करें?

तुम्हारा मन किसी दिशा में भाग रहा है, तुम मन की दिशा को परिवर्तन देना चाहो या उलट देना चाहो, इससे अगर तुमको लाभ होगा भी तो आंशिक होगा।

मात्र दर्शन, विशुद्ध अवलोकन, आंशिक लाभ से कहीं ज़्यादा लाभ देता है। बस उसमें थोड़ा खतरा होता है।

जब तुम एक अनचाहे विचार को, एक प्रिय विचार की तरफ पलटते हो, तो तुम्हें सुख मिलता है और सुरक्षा मिलती है। तुम्हें कोई विचार उठ रहा था, जिसको तुम कहते हो कुविचार, और उसका पता लगते ही तुमने उसको बना दिया सुविचार। तुम्हें सुख भी मिलेगा, तुम्हें गौरव भी प्रतीत होगा, और तुम्हें सुरक्षा भी रहेगी।

सुरक्षा इसीलिए रहेगी, क्योंकि ये सुविचार जाना-पहचाना है। कुछ नया नहीं घट रहा। कुविचार का क्षेत्र भी जाना पहचाना है, और सुविचार का क्षेत्र भी जाना पहचाना है। क्या हम पहले से ये नहीं जानते हैं कि किन विचारों को कुविचार कहना है, और किन विचारों को सुविचार कहना है?

तो कुविचार से, सुविचार की ओर जाने में हमें कोई बड़ी अड़चन नहीं होती। हमारी सुरक्षा पर कोई खतरा नहीं आता, और हमें गौरव भी मिल जाता है। किस बात का? कि — “देखो कितना अच्छा किया? मैं कितना भला आदमी हूँ। गलत कुछ हो रहा था, और मैंने उसको होने नहीं दिया।” सुख भी मिल गया।

तो इसमें कोई लाभ होगा भी, तो मैंने कहा — आंशिक होगा।

कुविचार से सुविचार की ओर जाना कोई बड़ी बात नहीं, असली घटना तब घटती है जब तुम कुविचार के सिर्फ़ दृष्टा हो।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org