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वीरता और कायरता पर 5️⃣ बातें याद रखें!
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🔸 सूरा के मैदान में, कायर फसिया आए।
ना भागे ना लड़ सके, मन ही मन पछताए॥
~कबीर साहब
(सूरा मतलब शूरवीर)
क्यों कह रहे हैं कबीर? ‘ना भागे ना लड़ सके’ , लड़ नहीं सकता, ठीक बात है। कायर है, लड़ेगा क्या? पर वह भाग क्यों नहीं सकता है? ये सवाल है। भाग इसलिए नहीं सकता कि भाग के जायेगा कहाँ। जहाँ जायेगा वहीं मैदान है। भागने को कोई जगह ही नहीं है। एक युद्ध से भागेगा, दूसरे में जाना पड़ेगा। ये जो पूरा क्षेत्र है, यही कुरुक्षेत्र है। पूरा मैदान ही लड़ाई का मैदान है।
🔸 ऐसा नहीं कि कायर भागने की कोशिश नहीं करता। भागता वह पूरा है। कायर और करेगा भी क्या? पर जहाँ जाता है, वहीं आफ़त सामने पाता है। एक लड़ाई से भागता है, दूसरी में प्रविष्ट हो जाता है।
🔸 ये सूरा का मैदान है। मैदान तो हैं ही, पर इस मैदान का मज़ा वही लेते हैं जो शूर होते हैं। जिसने आफ़तों में मज़ा लेना सीख लिया है, वही इस जन्म का आनंद उठा पाते हैं।
सुना होगा आपने? “वीर भोग्या वसुंधरा”। जीवन को भोगते ही वही हैं जो वीर हैं।
🔸 “सूरा के मैदान में, कायर फसिया आए”।
यहाँ तो कायर बस फँस-सा गया है। यहाँ तो उसको लगातार यही लगता रहेगा कि उफ़ क्यों जन्म ले लिया, क्यों जीवन में फँस गया। और जिस दिन वह मरेगा उस दिन बड़ी शान्ति का अनुभव करेगा। कहेगा, “बाप रे बाप, फँस गया था पता है, ज़िंदगी मिल गयी थी। चालीस-पचास साल, अस्सी साल फँसा रहा, अब जा कर मुक्ति मिली है”। और इसी कारण आपने देखा होगा कि अक़्सर लोग मृत्यु की कामना करते हैं और यही कहते हैं, “मुक्ति मिले किसी तरीके से”। ये वही हैं–कायर। इन्हें इस मैदान में कोई आनंद नहीं है।
🔸 “ना भागे ना लड़ सके, मन ही मन पछताए”। ग्लानि में जियेगा, इधर से उधर भागता फिरेगा। हम इतना ही कर दें अगर कि भागना बंद कर दें, तो जीवन कितना बदल जाये। और भागने के सौ बहाने हैं हमारे पास। तुम भाग के जाओगे कहाँ? चारों तरफ बस यही मैदान ही है।
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