वीगनिज़्म कोई सिद्धांत नहीं, आत्मा की बात है

वीगनिज़्म कोई सिद्धांत नहीं, आत्मा की बात है

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मेरा प्रश्न ये था कि स्पिरिचुअल वीगनिज़्म क्या होता है?

आचार्य प्रशांत: ये तो प्रश्न है ही नहीं आपका।

प्र: ऐक्चुअली मैं वीगनिज़्म में, एक्टिविज़्म में काफ़ी दिलचस्पी रखती हूँ आजकल, और अहमदाबाद के काफ़ी ग्रुप्स में मैं इन्वॉल्व हो गई हूँ। और एक बुकलेट डिज़ाइन कर रही थी, तो उसमें गाय के बारे में पूरा, गाय की पूरी लाइफ़ के बारे में पूरा था। और उसका जो लास्ट पेज था, उसमें गाय मर जाती है, उसको काट देते हैं, ऐसा फ़ोटो ढूँढ रही थी मैं नेट पर। तो फ़ोटो बहुत देर तक ढूँढ रही थी, मिला नहीं।

फिर उसके बाद मैंने यूट्यूब पर वीडियोज़ देखे उसके बारे में, और फिर मैं सो गई और मेरे को सपने में आया कि मेरे सामने एक गाय कट रही है और मैं उसकी फ़ोटो खींच रही हूँ। तो मैं उठ कर बहुत रोई, और मेरे को लगा कि इतनी हिंसा जो है, वीगनिज़्म उससे एक तरह का एक एंटरटेनमेंट नहीं बोल सकती, लेकिन वो एक एनर्जी देता है। तो यहाँ आकर मेरे को दो दिन इतना अच्छा लगा कि शांति से बातें हो रही थीं, और मेरे को लगा मेरा पूरा वीगनिज़्म … उसमें स्पिरिचुअलिटी कैसे लाऊँ?

आचार्य: वीगनिज़्म अगर असली है, तो उसका आधार आध्यात्मिक ही होगा, और सिर्फ़ तभी वो टिक सकता है। अगर वीगनिज़्म सिर्फ़ एक विचार है, एक आइडियोलॉजी है, तो उसमें बहुत दम नहीं होगा, बहुत दूर तक नहीं जाएगा, और व्यापक नहीं होगा; वो जीवन के बस एक हिस्से में सीमित रह जाएगा, आपके पूरे जीवन को एकरस नहीं कर पाएगा।

वीगनिज़्म माने क्या? बस इतना ही कि जीने के लिए किसी जानवर पर अत्याचार करना ज़रूरी नहीं है, इतनी-सी बात को वीगनिज़्म कहते हैं। ठीक? ये कोई पश्चिमी अवधारणा नहीं है, ये तो वेदों की करुणा है सीधे-सीधे। जो वेदान्त थोड़ा भी जान गया, वो किसी भी जीव के प्रति अब हिंसा का भाव नहीं रख सकता। तो वीगनिज़्म कोई आज की बात नहीं है, भले ही आज उसको एक रूप में मान्यता मिल रही हो, चलन मिल रहा हो, पर वो चीज़ तो बहुत पुरानी है न! आत्मा से उठने वाली चीज़ है वो, तो आत्मा जितनी ही पुरानी है।

तो बस इतना-सा — ‘ये शरीर है, इस शरीर का उपयोग मुझे करना है किसी भले और ऊँचे काम के लिए, इस शरीर को चलाने के लिए किसी दूसरे के शरीर को दुख नहीं पहुँचाऊँगा मैं’ — बस ये वीगनिज़्म है। ‘मैं इस शरीर के पोषण के लिए किसी दूसरे के शरीर से न चमड़ा लूँगा, न दूध लूँगा, न दही लूँगा, माँस और खून तो लेने का सवाल ही क्या है! और सिर्फ़ भोजन की बात नहीं है; मैं घोड़े पर नहीं बैठूँगा, मैं कहीं पर इस तरह का काम होते देखूँगा कि बैलों के साथ अत्याचार हो रहा है, गधे पर ईंटें लादी जा रही हैं, मैं इस चीज़ का भी समर्थन नहीं करूँगा।‘

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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