विश्वास, जानना, लक्ष्य…

वक्ता: जिसे तुम विश्वास कह रहे हो वह दो तरह का होता है: पहला, विश्वास और दूसरा श्रद्धा, और इन दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर है। इसको ध्यान से समझिएगा। विश्वास का अर्थ होता है कि मैंने जाना नहीं है। विश्वास जो है, दो तरह का होता है, पहले का अर्थ होता है कि मैंने जाना नहीं, बस मान लिया। तुम सब विज्ञान के छात्र हो?

श्रोता: हाँ, सर।

वक्ता: क्या तुम मान लेते हो जो किताबो में लिखा है? प्रयोगशाला है, प्रयोगशाला में जाकर उसे सत्यापित भी करते हो? किसी ने कोई थ्योरम दिया तो इसका प्रमाण माँगते हो। विश्वास तो नहीं किया ना? जो दूसरा विश्वास है, वह है श्रद्धा। श्रद्धा का अर्थ होता है मैंने जाना। जो भी विश्वास, श्रद्धा बनेगा वह सच्चा होगा। उसमें धोखे का सवाल नहीं उठता क्यूँकी तुमने जाना है। जिसमें विश्वास होगा कि दूसरों ने कहा है, वह टूटेगा। उसमें तो धोखा भी होगा और दुःख भी मिलेगा। तो इसलिए मानो नहीं जानो। यह बात याद रखोगे?

श्रोता: हाँ, सर।

वक्ता:

मानो नहीं जानो।

हमारी ज़िन्दगी मानने पर चलती आ रही है। मैं तुमसे सिर्फ़ एक बात कर रहा हूँ कि मानो नहीं, जानो। इस शक्ति का इस्तमाल करो फिर देखो कितना मज़ा आता है।

श्रोता: सर, आज आपने देखने की बात कही, जो ज़ाहिर है। दस में से नौ लोग खास कर जवान, जो हमारे उम्र के हैं, गांधी को गाली देते है, ठीक हैं। गांधी के बारे में गलत शब्द इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने हमारे देश के लिए किया या नहीं किया, उसकी मुझे जानकारी नहीं है। पर इतना जानता हूँ कि उन्होंने देश के लिए अपने परिवार को, अपने बच्चे, सुख जीवन को छोड़कर सारा जीवन इसी में बिताया। कहीं ना कहीं बहुत समर्पण था इसलिए रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें महात्मा…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org