विश्वास क्या है?

विश्वास का अर्थ है मानना। विश्वास का अर्थ है कहना कि ‘ऐसा है’।

ये जो वाक्य है, ‘ऐसा है’, इसको तीन-चार अलग -अलग तलों पर कहा जा सकता है।

सबसे नीचे का जो तल है, वो है अंधविश्वास। उसके ऊपर है, विश्वास। उसके ऊपर आता है, विचार और उसके भी ऊपर आता है, समझ।

अंधविश्वास, विश्वास, विचार, समझ। ये चार तल हैं ये कह पाने के कि ‘ऐसा है’।

अंधविश्वासी मन विचार तक भी नहीं करेगा। उसको तुम कुछ भी कह दो, वो बोलेगा, ‘हाँ, बात चली आ रही है पाँच सौ सालों से, ठीक है ही।’ वह सोच भी नहीं पाता। पूरी तरह अंधा है, मन की आँखें बिलकुल बंद।

उसके ऊपर आता है, विश्वास। ये आदमी थोड़ा तर्क करेगा, इधर-उधर से कुछ बात पूछेगा, लेकिन जल्दी ही मान लेगा। कर लिया विश्वास। समझा नहीं है, जाना नहीं है, लेकिन विशास कर लिया है। किस आधार पर विश्वास किया है? कि जो बता रहे होंगे, वो ठीक ही कह रहे होंगे- ये उसका तर्क है । ‘किताबों में लिखा है, शिक्षक बता रहे हैं, माँ-बाप बता रहे हैं, तो ठीक ही बता रहे होंगे।’

उसके ऊपर आता है वो व्यक्ति, जो विचार करता है। जो विचारक है। ये किसी भी बात को आसानी से नहीं मान लेता। ये खूब बहस करता है। ये वैज्ञानिक है, ये प्रमाण माँगता है। लेकिन इसके साथ दिक्कत ये है कि ये वहीं तक जा पाता है, जहाँ तक प्रमाण उपलब्ध हैं। जिस बात का प्रमाण मौज़ूद नहीं, ये उसको मानने से इनकार कर देता है।

अब प्रेम का तो कोई प्रमाण नहीं होता। तो ये मानेगा ही नहीं कि प्रेम जैसा भी कुछ है। उसको तुम ये कहो कि…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org