विनाश की ओर बढ़ती मानवता

कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि आदमी की हरकतों से पूरे ग्रह के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया हो। आज तुम्हारे पास इतने आणविक अस्त्र हैं कि तुम इस धरती को दस हज़ार बार मिटा सकते हो। अपने ही घर को दस हज़ार बार मिटाने का आयोजन जो लोग कर लें क्या वो पागल नहीं हैं?

कोई समय ऐसा नहीं रहा जब धरती के सामने विनाश की समय सीमा रख दी गई हो। तुम्हारे सामने चंद दशकों का समय बचा है बस। औसत तापमान करीब-करीब दो डीग्री पहले ही बढ़ चुका है। ये काम…

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रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org