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विनाश की ओर उन्मुख शिक्षा

प्रश्न: सर, एक छोटा बच्चा जो अपने माँ-बाप को ठीक से नहीं पहचानता उसे स्कूल भेज दिया जाता है। वो बच्चा फिर अलग-अलग चीज़ें सीखता है, मिसाइल बनाना सीखता है। तो ये शिक्षा प्रणाली सही है या गलत?

आचार्य प्रशांत: तुम्हें पता है। बिलकुल ठीक बात है। जिस मन को अभी अपना होश नहीं, उस मन को मिसाइल बनाना सिखा दोगे, तो वो क्या करेगा? बन्दर के हाथ में जब तलवार दे दी जाती है, तो क्या करता है? तो जहाँ भी मौका पाता है, वहीँ पर चला देता है।

शिक्षा ऐसी ही है हमारी, बस एक बात हमसे छुपाए रखती है। क्या? कि जानकारी किसको मिल रही है। जानकारी पाने वाला कौन है। दुनिया भर की सूचनाएं तुम्हें दे दी जाती हैं, दुनिया भर का ज्ञान तुम पर लाद दिया जाता है। दुनिया में कितने सागर हैं, उन सागरों की गहराई कितनी है, दुनिया में कितने देश हैं, उन देशों की व्यवस्था कैसे चलती है, समाज क्या होता है, विज्ञान क्या होता है, अर्थव्यवस्था क्या होती है, कितनी भाषाएं हैं, गणित। दुनिया भर का डेटा तुम्हारे दिमाग में डाल दिया जाता है जैसे डेटा डाउनलोड किया जा रहा हो। जिसकी मशीन जितनी अच्छी है, उस डेटा को ग्रहन करने में वो उतना बड़ा टॉपर निकल जाता है। और हो कुछ नहीं रहा है। तुम्हारा दिमाग इसको बस एक हार्ड डिस्क की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें बस सूचनाएं भर दो। इससे अच्छा तो एक चिप ली जाए, उसमें सब कुछ फ़ीड करके तुम्हारे दिमाग से जोड़ दिया जाए। सारा बाहरी ज्ञान ही तो है।

पर जिन लोगों ने शिक्षा व्यवस्था बनाई, उनको ये ज़रा भी समझ में नहीं आया कि

सबसे पहली शिक्षा तो है - आत्मज्ञान।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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