विद्या और अविद्या, जीत और हार

प्रश्नकर्ता: "अगर हम अविद्या जानते हैं तो अंधकार में जाते ही हैं, लेकिन साथ-साथ हम अगर विद्या भी जानते हैं तो और गहनतम अंधकार में जाते हैं।" तो ओशो भी कहते हैं कि जैसे एनलाइटमेंट जैसी कोई चीज़ होती नहीं है, और जैसे हम दिन में जब होश में रहते हैं, सही काम कर रहे हैं, वही एनलाइटमेंट है; जैसे ही कोई ग़लत काम करते हैं, फिर से पहले वाली अवस्था में आ जाते हैं।

तो साकार और निराकार और ये विद्या-अविद्या को कैसे हम देखें? थोड़ा उदाहरण से समझाइए। कैसे जानें कि विद्या, अज्ञान हो जाने पर या विद्या का ह्रास हो जाने पर हम कुछ ग़लत काम नहीं करते?

आचार्य प्रशांत: देखो दो-तीन बातें हैं। पहली बात तो जिन श्लोकों को आप उद्धृत कर रहे हैं वो ये नहीं कहते कि विद्या जानने पर अंधकार में जाते हो या अविद्या जानने पर अंधकार में जाते हो। वो कहते हैं — सिर्फ़ अविद्या जो जानता है वो गहरे अंधकार में जाता है और मात्र, सिर्फ़ विद्या जो जानता है वो गहनतम अंधकार में जाता है। ये जो ‘मात्र’ है न, ‘सिर्फ़’, ‘ऑनली’, ये बड़े महत्व का है, इससे चूकिए मत। कह रहे हैं, “दोनों होने चाहिए साथ में।“

वास्तव में ज़रूरत नहीं है कहने की कि दोनों होने चाहिए साथ में। थोड़ी देर पहले हमने इस पर चर्चा करी थी, विद्या आ ही नहीं सकती बिना अविद्या के। विद्या अगर वास्तविक है तो बिना अविद्या के आ नहीं सकती। खुद को आप जान ही नहीं सकते बिना उन विषयों को जाने, जिनकी ओर आप लपकते रहते हैं। लेकिन चूँकि हम बहुत फ़सादी लोग हैं, बड़े झूठे लोग हैं, हम ये दावा कर सकते हैं, कि “विद्या है हमें और अविद्या बिलकुल नहीं।“ तो इसलिए ऋषियों को दोहरा कर स्पष्ट करना पड़ा, कि “जो लोग सिर्फ़ विद्या रख रहे हैं, अविद्या बिलकुल नहीं, वो और गहरे अंधकार में जाएँगे, क्योंकि जो संसार को जानते हैं उन्हें कम-से-कम…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org