विद्या और अविद्या किसको कहते हैं?

आचार्य प्रशांत: फ़िर क्या पूछा है? “विद्या और अविद्या किसको कहते हैं?” तो बड़ा सारगर्भित और संक्षिप्त उत्तर देता है उपनिषद्:

“अहंभाव की जन्मदात्री अविद्या है और जिसके द्वारा अहंभाव समाप्त हो जाए, वही विद्या है।“
— सर्वसार उपनिषद्, श्लोक ३

जिससे अहंभाव जन्म ले, वो है अविद्या, और जिससे अहंभाव समाप्त हो जाए, वो है विद्या। ध्यान से समझेंगे।

देखिए, इस पर बड़ा संशय रहा है और बड़े तरीकों से विद्या और अविद्या की परिभाषा करने की कोशिश की गई है। मेरी दृष्टि जहाँ तक जाती है, वो मैं कहता हूँ।

दो तरह का ज्ञान हो सकता है: एक ज्ञान वो जिसमें मात्र विषय की, जो दिखाई पड़ रहा है, जो ऑब्जेक्ट (वस्तु) है, उसकी बात होती है, उसको कहते हैं अविद्या। ठीक है?

और वो ज्ञान जिसमें आप न सिर्फ़ विषय को बल्कि विषेयता को भी देख रहे हो, न सिर्फ़ ऑब्जेक्ट को बल्कि सब्जेक्ट को भी देख रहे हो, उसको कहते हैं विद्या। समझ रहे हो बात को?

अंग्रेज़ी में जिसे हम नॉलेज (ज्ञान) कहते हैं, वो वास्तव में सिर्फ़ विद्या के लिए उपयुक्त हो सकता है, ज्ञान। तो अविद्या के लिए क्या उपयुक्त होगा?

अविद्या के लिए उपयुक्त होता है निष्यन्स (अज्ञानता)। है वो एक तरह का ज्ञान ही, उसमें भी आप सूचना और जानकारी इकट्ठा कर रहे हो, पर शास्त्रीय संदर्भ में उसको हम नॉलेज भी नहीं कहेंगे, उसको हम कहेंगे निष्यन्स

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org