विद्या-अविद्या क्या, बंधन-मुक्ति क्या?
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, विद्या और अविद्या क्या है?
आचार्य प्रशांत: जो जन्म ले वो है, अविद्या और जिससे अहम भाव समाप्त हो जाए वो है, विद्या। ध्यान से समझेंगे।
देखिए, इस पर बड़ा संशय रहा है और बड़े तरीकों से विद्या और अविद्या की परिभाषा करने की कोशिश की गई है। मेरी दृष्टि जहाँ तक जाती है वो मैं कहता हूँ।
दो तरह का ज्ञान हो सकता है।
एक ज्ञान वो जिसमें मात्र विषय की, जो दिखाई पड़ रहा है, जो ऑब्जेक्ट (वस्तु) है, उसकी बात उसकी बात होती है, उसको कहते हैं, अविद्या।
ठीक है?
और वो ज्ञान जिसमें आप ना सिर्फ़ विषय को, बल्कि विष्येता को भी देख रहे हो, ना सिर्फ़ ऑब्जेक्ट को बल्कि, सब्जेक्ट को भी देख रहे हो, उसको कहते हैं विद्या।
समझ रहे हो बात को?
अंग्रेज़ी में जिसे हम नॉलेज (ज्ञान) कहते हैं वो वास्तव में सिर्फ़ विद्या के लिए उपयुक्त हो सकता है - ज्ञान। तो अविद्या के लिए क्या उपयुक्त होगा?
अविद्या के लिए उपयुक्त होता है नेसियन्स (अविद्या)। है वो एक तरह का ज्ञान ही। उसमें भी आप सूचना और जानकारी इकट्ठा कर रहे हो। पर शास्त्रीय संदर्भ में उसको हम नॉलेज भी नहीं कहेंगे। उसको हम कहेंगे नेसियन्स।
“ज्ञान वास्तव में सिर्फ़ तब है जब आप दृश्य के साथ-साथ दृष्टा की भी चर्चा करो।”