विद्यार्थी जीवन, पढ़ाई, और मौज

प्रश्न: आचार्य जी मैं पढ़ नहीं पा रहा हूँ, और हमेशा बेचैन रहता हूँ। क्या नहीं पढ़ना ही मेरी बेचैनी का कारण है? या कोई और कारण है जिसे मैं समझ नहीं पा रहा हूँ ?

आचार्य प्रशांत: पढ़ाई तो आप करते ही नहीं आए हो न। और आप इंजीनियरिंग में पहुँच गए, वो भी किसी उम्मीद के साथ। कोई बहुत अच्छा कॉलेज तो होगा नहीं, और बहुत अच्छे तुम छात्र भी नहीं। तो घुसे हो, और सालभर में बात समझ में आ गई कि जो उम्मीदें लेकर आए हो वो यूँहीं थीं, दिवास्वप्न, पूरी होनी भी नहीं हैं। पढ़ने में तुम्हारी रुचि पहले भी बहुत नहीं थी, और अब उम्मीद टूटी है तो बिलकुल ही नहीं बचेगी।

तो ये है कहानी। इसमें तुम मुझे समझा क्या नहीं पा रहे थे ?

प्र: आचार्य जी, मैं लेकिन पढ़ना चाहता हूँ अभी। मैं पुस्तकों के साथ मौज मारना चाहता हूँ।

आचार्य: मौज तो तभी मनती है जब पहले उनमें घुसते हो, जब उनके साथ समय बिताते हो। और आप उनके साथ समय नहीं बिताओगे, अगर समय बिताने के पीछे कोई कारण है। कारण लगेगा अभी है, और कारण लगेगा अभी सिद्ध नहीं हो सकता, तो तुम्हारी रुचि ख़त्म हो जाएगी।

कारणवश, प्रयोजनवश जो भी काम करोगे उसमें बहुत जान थोड़े ही होगी। उसके लिए तभी तक प्रेरित रहोगे जब लगेगा कि तुम्हारी आशा पूरी हो सकती है। जैसे ही ये एहसास होगा कि यहाँ दाल नहीं गलने वाली, वैसे ही सारी प्रेरणा छूमंतर हो जाएगी। कोई ऊर्जा नहीं बचेगी, काम करने का मन नहीं करेगा।

पुस्तकों के साथ मौज मनाना तो उसके लिए है न जो अकारण पढ़ता हो, निष्प्रयोजन पढ़ता हो। तुम भी निष्प्रयोजन हो जाओ, तुम भी मौज मनाओगे। ये उम्मीद मन से बिलकुल निकाल दो कि पढ़ाई नौकरी की ख़ातिर होती है, फिर पढ़ने लग जाओगे।

प्र: आचार्य जी, आपको ऐसा कहते पहले भी सुना है, मैं फिर भी पढ़ नहीं पाता हूँ।

आचार्य: क्योंकि तुम पढ़ते तो कभी भी नहीं थे। पढ़ते तो तुम कभी भी नहीं थे। मेरी बातें सुनने भर से तुम निष्प्रयोजन थोड़े ही हो गए हो।(सामने रखे एक पोस्टर पर लिखी उक्ति की ओर इंगित करते हुए) ये क्या लिखा है इस पोस्टर पर?

प्र: ओपिनियंस आर नॉट ट्रुथ (अभिमत सत्य नहीं होता)।

आचार्य: जो एक वाक्य पढ़ सकता है, वो पूरा अध्याय भी पढ़ सकता है। इतना पढ़ लिया तो और क्यों नहीं पढ़ सकते? वाट्सएप्प मैसेज पढ़ते हो या नहीं? होर्डिंग (पट विज्ञापन) पढ़ते हो या नहीं? बाज़ार में निकलते हो तो बैनर पढ़ते हो या नहीं? जब ये सब पढ़ सकते हो तो एक अध्याय क्यों नहीं पढ़ सकते? छोड़ो एक अध्याय, क़िताब का एक पैराग्राफ (अनुच्छेद खंड) क्यों नहीं पढ़ सकते? या नहीं पढ़ सकते?

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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