विदेशी पत्रिका द्वारा भारतीय देवी-देवताओं पर मज़ाक

प्रश्नकर्ता: फ्रांस की पत्रिका है चार्ली हेबडो। व्यंग्य संबंधित ही इनकी ज़्यादातर समाग्री रहती है। अतीत में भी ये पत्रिका काफी चर्चा और विवाद में रही है। अभी हाल में ही, कल-परसों ही इन्होंने एक कार्टून छापा है जिसमें भारतीयों को ऑक्सिजन के अभाव में तड़पते और दम तोड़ते हुए दिखाया जा रहा है। और फिर उस कार्टून में इन्होंने तंज कसते हुए ये सवाल किया है कि कहाँ गए भारतियों के लाखों-करोड़ों देवी-देवता? इतने सारे आपके देवी-देवता हैं तो वो आपके लिए ऑक्सिजन क्यों नहीं पैदा कर सकते ऐसा चार्ली हेबडो ने व्यंग्य करा है।

हिंदुओं को कमज़ोर समझकर कोई भी हमारे धर्म की खिल्ली उड़ा देता है, ये बात मुझे बहुत क्रोधित करती है।

आचार्य प्रशांत: एक क्रोधित प्रतिक्रिया प्राकृतिक रूप से आपमें उठ रही है और भी जो हिंदू लोग हैं उनमें ये प्रतिक्रिया उठेगी। और बात भी जो इस पत्रिका ने कही है वो मूर्खता की ही है, फूहड़ बात है। इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन अपने क्रोध से थोड़ा हटकर के अगर हम समझना चाहें कि ये पत्रिका इस तरह की अनर्गल बात कर कैसे पाई तो वो हमारे लिए बेहतर होगा।

कैसे कर पाई?

क्या कह रहा है वो कार्टून? कार्टून कह रहा है कि इतने तुम्हारे पास देवी-देवता हैं उनमें से कोई तुम्हारे लिए ऑक्सिजन क्यों नहीं पैदा कर पा रहा।

कार्टून के पीछे सिद्धांत क्या है?

सिद्धांत ये है कि ये तुम्हारे देवी-देवता हैं इन्हें तुम्हारी मदद के लिए आना चाहिए, तुम्हें जिस भी तरह की संसारिक सहायताओं की ज़रूरत हो वो भी इन देवी-देवताओं को देनी चाहिए। वो क्यों नहीं दे रहे वैसी सहायता।

अब ये जो फ्रेंच व्यंग्यकार हैं उन्हें ये किसने बताया कि देवी-देवताओं का ये काम होता है कि हमारे संसारिक मसलों में हमारी सहायता करें? ये उन्हें किसने बताया? ये बात तो उनकी कल्पना नहीं है, ये बात उनके सपने में नहीं आई है न।

और यही बात इस कार्टून के पीछे का मूल सिद्धांत है। क्या बात? कि हिंदू अपने तमाम संसारिक मसलों में अपने देवी-देवताओं को सम्मिलित करे रहते हैं, उनसे मदद माँगते रहते हैं, तो अब जब एक संसारिक आफत आई है, कोरोना महामारी के रूप में, तो उनके देवी-देवता उन तक ऑक्सिजन क्यों नहीं पहुँचा रहे?

ये है इस व्यंग्य के पीछे का सिद्धांत। बात उस व्यंग्य में बहुत बेवकूफी की करी गई है क्योंकि दैवीय शक्ति का काम होता है आपके भीतर दैवीयता को जागृत करना। संसारिक उठा-पटक में आपका साथ देना ये दैवीयता का काम होता ही नहीं है। लेकिन हम कुछ तो ऐसा कर रहे होंगे न, जिससे पूरी दुनिया को ये संदेश जा रहा है कि हमारे देवी-देवता को हमने तमाम दुनियादारी के मसलों में भी शामिल कर रखा है।

और हम ऐसा क्या कर रहे हैं? हम ऐसा बहुत कुछ कर रहे हैं। उदाहरण के लिए — मेरा घर नहीं बन रहा…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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