वासना से सबका जन्म है, फिर वासना की निंदा क्यों?

प्रश्नकर्ता: अध्यात्म में कामवासना, शारीरिक-आकर्षण, इन सबके विरुद्ध सावधान रहने को कहा जाता है, लेकिन जिस प्रक्रिया से एक जीव इस दुनिया में, अस्तित्व में आता है, वह प्रक्रिया ग़लत कैसे हो सकती है?

आचार्य प्रशांत: जो सवाल पूछ रहे हैं, उनकी कुछ धारणाएँ हैं, जो सवाल के पीछे छुपी हुई हैं। उनकी सबसे केंद्रीय धारणा ये है कि शारीरिक-जन्म अपने-आपमें कोई बहुत पूरी या शुभ बात होती है। दूसरी धारणा उनकी ये है कि हम हमारा शरीर ही हैं।

देखिए, समझिए। आपने अपनी जगह तर्क बिलकुल भरपूर दिया है। आप कह रहे हैं कि, “हम जिस प्रकिया से दुनिया में आए हैं, वो प्रक्रिया कैसे ग़लत हो सकती है क्योंकि हम ही ग़लत नहीं हैं। शरीर आता है न काम और वासना के माध्यम से दुनिया में?” तो पूछने वालों का मानना है कि हम शरीर हैं, और हम दुनिया में आए हैं, बहुत शुभ काम हुआ है, और दुनिया में हमें लाने का काम वासना ने किया है, तो वासना के विरुद्ध फिर सावधान रहने की ज़रूरत क्या है? नहीं, ऐसा नहीं है।

पहली बात तो ये है कि आप शरीर हैं — यही आपका मूल कष्ट है। दूसरी बात — जबतक आप अपने-आपको जानते नहीं हैं, अपने-आपको और बाकी सब लोगों को शरीर ही मानते रहते हैं, तबतक आपके लिए सबसे बड़ी बात, सबसे शुभ घटना यही होती है कि किसी जीव का शारीरिक-आगमन हो जाए, वो आ जाए। आपको यही बहुत बड़ी बात लगती है, जन्म हो जाए। लेकिन जो समझदार हो जाता है, उसके लिए शुभ बात या बड़ी बात ये नहीं होती कि शारीरिक रूप से दुनिया में आ गए। उसके लिए बड़ी बात ये होती है कि मानसिक रूप से दुनिया से प्रस्थान कर गए। जो लोग इस बात की ख़ुशी मनाते हैं कि उनका शरीर इस दुनिया में आ गया, वो शरीर ही बनकर लगातार मौत जैसे कष्ट भोगते हैं। जो शरीर के जन्म की ख़ुशी मनाते हैं, वो शरीर ही बनकर…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org