वासना सताए तो क्या करें?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मेरे मन में सेक्स से सम्बंधित बहुत विचार आते हैं तो फिर इनको कैसे कम करें या काबू में करें?

आचार्य प्रशांत: ज़िंदगी यूँ ही छोटी है उसमें किसी ऐसे काम के लिए तुम समय कहाँ से निकाल रहे हो जो तुमको पता है कि थोड़ी देर की उत्तेजना के अलावा तुम्हें कुछ नहीं देगा? समय यूँ ही कम है तुम्हारे पास, उसमें से भी तुमने समय थोड़ी देर के मसाले को दे दिया अब क्या होगा? समय और कम बचेगा न।

सेक्स में कोई बुराई नहीं थी अगर उससे तुमको मुक्ति मिल जाती। मैं सेक्स के माध्यम से कह रहा हूँ। अगर सेक्स के माध्यम से तुमको तुम्हारे दुखों से, तुम्हारे बंधनों से मुक्ति मिलती होती तो मैं कहता तुम सेक्स के अलावा कुछ करो ही मत, तुम दिन-रात अपनी वासना को ही पूरी करने में मग्न रहो। लेकिन ऐसा होता है क्या?

अरे, सब यहाँ वयस्क बैठे हुए हैं, प्रौढ़ हैं, चढ़ी उम्र के लोग हैं, सब अनुभवी हैं कुछ बोलिए, ऐसा होता है कि तुम जो यौन कृत्य होता है उसमें पचास बार संलग्न हो जाओ, कि पाँच-सौ बार, कि पाँच-हज़ार बार ऐसा होता है कि अब अंत आ गया, अब इसके बाद किसी उत्तेजना की कोई आवश्यकता नहीं, पार पहुँच गए, ऐसा होता है? या ऐसा होता है कि जो अधूरापन पहली बार था, जो अधूरापन बीसवीं बार था, जो अधूरापन दो-सौवीं बार था वही अधूरापन अब भी है। तो कभी-न-कभी तो तुम्हें इमानदारी से इस निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ेगा न कि यहाँ बात बन नहीं रही है, इस दुकान का माल खरा नहीं है, बहुत आज़मा लिया यहाँ।

या तो तुम नए-नवेले बिलकुल छैल-छबीले होते पंद्रह की उम्र के और तुम कहते कि, "साहब हमने दुनिया का कुछ अनुभव लिया नहीं, हम बिना जाने किसी चीज़ का त्याग कैसे कर दें?" उतने छोटे तो हो नहीं, दुनिया को भी देख लिया, तमाम तरह की इच्छाओं में लिप्त हो कर देख लिया…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org