वासना न पूरी होने की हताशा

प्रश्नकर्ता: मैं अर्थशास्त्र विषय में अनुसंधान कर रहा हूँ। मैं अपने विभाग में मेरी एक सीनियर छात्रा से अनुसंधान के कार्य के दौरान संपर्क में आया। उन्होंने मुझसे सांख्यिकी विषय में मदद ली थी, इसी दौरान मैं उनकी ओर आकर्षित होना शुरू हुआ। इस आकर्षण के कारण मेरी पढ़ाई, मेरा अनुसंधान बाधित हो रहा है और मेरे सहपाठी मुझसे आगे जा रहे हैं, जिससे मेरे अंदर क्रोध तथा ईर्ष्या जैसे विकार उत्पन्न हो रहे हैं। यही नहीं विभाग के सभी लोगों के साथ, मेरा व्यवहार भी बिगड़ता जा रहा है। आचार्य जी मुझे ये बताने की कृपा करें कि कैसे मैं अपने सीनियर से निडरतापूर्वक बिना आकर्षित हुए बात भी कर सकूँ और अपने अनुसंधान पर ध्यान भी दे सकूँ?

आचार्य: इसमें से ज़्यादातर बातें तो तुम खुद ही समझते हो न? तुम यूनिवर्सिटी क्या करने गए थे?

प्र: पढ़ने गए थे।

आचार्य: पढ़ लो बेटा! फिर तुम्हें कोई वाकई लाभ दिखता हो? तो जो भी कोशिश कर रहे हो उसको आगे बढ़ाओ। तुम्हारी कोशिश सफल भी हो गयी तो क्या पाओगे?

ये सब आकस्मिक घटनाएँ हैं। जिस व्यक्ति की बात कर रहे हो, वो तुम्हारी आँखों के सामने पड़ जाता है, तो इसीलिए बार-बार इंद्रियों पर अंकित हो जाता है, मन में उभर आता है। यही दो-चार छह महीना तुम्हारे सामने न पड़े तो भूल जाओगे। कोई और आ कर के उसकी जगह घेर लेगा और यही व्यक्ति तुम्हारी आँखों के सामने नहीं पड़ा होता, तो तुम्हारी जिंदगी में कोई कमी नहीं आ गयी थी, चल ही रही थी न जिंदगी? परेशानी तो अब पैदा हुई है, पहले तो चल ही रही थी, जैसी भी थी।

तो इंद्रियों का खेल है और इंद्रियों पर अगर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हो तो यही कर लो कि अपने आपको शारीरिक रूप से थोड़ा-सा दूर कर लो कि रोज-रोज न देखने को मिले या जब भी होता है हफ्ते,दस दिन, जितना भी तुम्हें...। कुछ ऐसा मामला है क्या कि आसपास, साथ-साथ ही काम होता है या लगातार दिखाई ही पड़ते रहते हो?

प्र: हाँ।

आचार्य: हाँ, तो अब वही है इधर-उधर अगर किसी तरह से स्थानांतरित हो सकते हो, डिपार्टमेंट में अगर ट्रांसफर का कोई प्रॉविजन है तो उसका उपयोग कर लो। क्योंकि सामने तो कुछ भी दिखेगा तो हम तो ऐसे हैं कि- जैसे केमिकल। ये बगल में क्या है? हीटर और ये क्या है? खम्बा, इसे गर्म हो ही जाना है। अब मैं इससे ये उम्मीद तो रख नहीं सकता कि ये 'जीवन-मुक्त' हो जाएगा। तो इसका एक ही तरीका है खंभा उठा करके कहीं और रख दो या फिर ये जो जड़ पदार्थ है (शरीर की तरफ इशारा करते हुए) इसको चेतना से संचालित कर दो, वो लंबा काम है देखो। जड़ पदार्थ से मेरा अर्थ है वो मन- जो चलता है रसायनों पर, केमिकल्स पर, या तो मन ऐसा कर लो कि अब वो हार्मोनल नहीं है, केमिकल नहीं है, कॉन्स्कीयस (चैतन्य)…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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