वासना निर्बल और निराधार क्यों?
तुम मुझे रोज़मर्रा की निर्बल और निराधार वासना से बचते रहने की शक्ति देते रहो।
~ रबीन्द्रनाथ टैगोर
आचार्य प्रशांत: वासना को रबीन्द्रनाथ निर्बल इसीलिए कह रहे हैं क्योंकि वासना में बल होता तो वासना उसको पा ही लेती ना जिसके लिए वो उठती है।
हर इच्छा, हर कामना, हर वासना चाहती क्या है?
शान्ति।