लड़कियों से बात करने में झिझक
प्रश्न: आचार्य जी, लड़कियों से बात करने में झिझक महसूस होती है। इस झिझक को कैसे दूर करूँ?
आचार्य प्रशांत जी: तुम हर समय लड़के बनकर क्यों घुमते हो?
तुम जितना ज़्यादा देह-भाव में जियोगे, उतना ज़्यादा अपने लिए परेशानियाँ खड़ी करोगे।
लड़कों के सामने कौन शरमाती है? लड़की। ‘लड़की’ माने क्या? लड़की का हाथ, लड़की का जिस्म, लड़की के अंग। कौन-सा अंग शरमाता है ज़रा बताना। लड़कियाँ लड़कों के सामने जाती हैं, तो क्या उनका शरीर मना कर देता है? गाल शरमाते हैं? होंठ शरमाते हैं? ऐसा तो कुछ होता नहीं। तो क्या होता है ऐसा लड़की में, जो लड़के के सामने जाने से घबराता है? वो मन जिसने अपनी पहचान बना रखी है कि – “मैं तो लड़की हूँ।” इस पहचान में मत जियो न।
कोई भी पहचान जो तुम लेकर चलोगे, वो तुम्हारे लिए एक झूठी आशा ही सिद्ध होगी।
तुम कुछ भी बनते ही इसी उम्मीद में हो कि इससे शांति, तृप्ति मिल जाएगी।
वो नहीं मिलते।
हाँ वो ज़रूर मिल जाता है किसकी बात कर रहे हो।
घबराहट मिल जाती है।
होता क्या है कि विपरीत लिंगी को देखकर तुम्हारी जो अपनी लिंग-आधारित पहचान है, जेंडर-आइडेंटिटी है, वो दूनी सक्रिय हो जाती है। लड़कियाँ सामने आतीं हैं तो तुम और ज़्यादा लड़के बन जाते हो। जब पुरुष सामने आता है, तो स्त्रियाँ और ज़्यादा ‘स्त्री’ हो जाती हैं। इन झंझटों से बचने का सीधा तरीका है – या तो अपने आप को कुछ मत मानो, और अगर बहुत आग्रह ही है अपने आप को कोई नाम…