लड़का-लड़की के खेल में जवानी की बर्बादी
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प्रश्न: आचार्य जी, आज से छः साल पहले एक लड़की की ओर आकर्षित हुआ। मेरे प्रेम की गुणवत्ता वही थी जो सामान्यतया मेरी उम्र के किसी भी लड़के की होती है। किन्तु उसी लड़की का पिछले वर्ष किसी दूसरे लड़के से प्रेम-सम्बन्ध हो गया। मैं पिछले पाँच वर्ष से सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा की तैयारी कर रहा हूँ, और लगातार असफल हो रहा हूँ।
मैं इससे कैसे बाहर आऊँ? कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।
आचार्य प्रशांत जी: सब काम करोगे, मेहनत भी कर लोगे, अगर मज़े में बैठकर खाने का आसरा न हो तो। सवाल बहुत हैं आज, और समय भी कम है, तो मुझे ज़रा बात कम शब्दों में चोट देकर बोलनी पड़ेगी।
कोई नहीं अपनी जवानी के पाँच साल ख़राब करे, अगर उसके पीछे लोग न हों जो उसको बैठाकर खिला न रहे हों।
हिम्मत ही नहीं पड़ेगी।
ये बात न प्रेम की है, न भावनाओं की है, न प्रतियोगी परीक्षा में असफलता की है। बात सीधी-सीधी ये है कि अधिकाँश ऐसे मामलों में पीछे माँ-बाप बैठे होते हैं, जो लड़के को घर में बैठाकर आसरा देने तैयार होते हैं।
और इसीलिए हिन्दुस्तान में ऐसे मामलों में जो प्रतिभागी होता है, वो लड़का ही होता है। अभी भी लड़कियों को तो घर पर पाँच-पाँच दस-दस साल घर पर बैठाया नहीं जाता, कि तुम बैठकर सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा की तैयारी करो। लड़के को कह दिया जाता है, “हाँ लाल, आओ बैठ जाओ, सुबह पराँठा भी मिल जाएगा, दोपहर का बढ़िया खाना, और रात को घी लगी रोटी। और बताओ क्या चाहिए?”
फ़िर ये खेल ऐसा है जिसमें परिणाम साल में एक बार आता है, और पूरे ज़माने को पहले ही पता है कि परिणाम में असफलता की सम्भावना ज़्यादा है। तो तुम असफल हो भी गए तो कोई लानतें नहीं भेजता, उँगली नहीं उठाता, क्योंकि इन परीक्षाओं में बैठने वाले लोगों में निन्यानवे दशमलव नौ प्रतिशत लोगों को असफल होना ही है।
दस-बीस लाख लोग बैठ रहे हैं, रिक्त पद होंगे आठ-सौ, हज़ार, तो लगा लो प्रतिशत। तो सब को पहले ही पता है कि सम्भावना पूरी-पूरी इसी की है कि — “लाल का चयन होगा नहीं।” अब चयन न होने पर तुम दस लाख लोगों में दो हज़ारवाँ स्थान रखते हो, चाहे नौ लाखवाँ स्थान रखते हो, परीक्षा परिणाम तुम्हें बस इतना ही बता देगा कि — “नहीं श्रीमान, खेद की बात है कि आपका चयन नहीं हुआ।”
फ़िर इस आधार पर तो आपसे उत्तर माँगे नहीं जाएँगे कि — “तू सालभर घर पर बैठा था, दस लाख लोगों में तेरा नौ लाखवाँ स्थान क्यों आया है?” वहाँ तो फिर अचयनित-अचयनित, सब बराबर। अगर हज़ार रिक्तताएँ हैं, जिसकी स्थिति या श्रेणी दो हज़ार है, और जिसकी श्रेणी नौ लाख है, वो सब एक बराबर हो गए न। दोनों को ही कुछ नहीं मिला। यहाँ तो ये है कि — या तो अन्दर…