लोग झूठे हैं, उनके साथ घुल-मिलकर कैसे रहें ?

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य ज़ी! आध्यात्मिक व्यक्ति की सामाजिक लाइफ़ (ज़िंदगी) कैसी होनी चाहिए? जीवन में मित्र और रिश्ते भी आवश्यक हैं लेकिन आध्यात्मिक लोगों की संख्या कम है, माया में लिप्त लोगों की ज़्यादा। सामाजिक पक्ष जीवन का कैसे मजबूत करें? मेरा जीवन कटा-कटा सा महसूस होता है, कहीं भी लोगों के साथ घुल-मिलकर रह नहीं पाता। घर, परिवार, सामाजिक जीवन, मानसिक स्वास्थ्य, ऑफिस (दफ्तर) का जीवन इत्यादि सबकुछ अस्त-व्यस्त सा लग रहा है। कृपया समझाने की अनुकम्पा करें।

आचार्य प्रशांत: नहीं, यह जो अभी वर्णन आया यह आध्यात्मिक मन की स्थिति का थोड़े ही है। यह तो एक ऐसे सामाजिक मन की स्थिति का वर्णन है, जो सामाजिक भी नहीं हो पा रहा है ठीक से। आध्यात्मिक आदमी यह थोड़े ही पूछता है कि समाज में मैं किस तरीके से समायोजित हो जाऊँ, एडजस्ट कर जाऊँ। वह यह थोड़े ही पूछता है कि समाज के लोगों के साथ किस तरीके से मैं बड़े सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बना कर रखूँ। यह उसकी वरीयता ही नहीं होती है। उसका केंद्र दूसरा होता है और वह जिस केंद्र पर होता है वहाँ से उसको इस बात से बहुत फ़र्क नहीं पड़ता कि लोग उससे कैसे सम्बन्ध रख रहे हैं।

मज़ेदार चीज़ यह है कि जब आपको इस बात से बहुत फ़र्क नहीं पड़ता कि लोग आपसे कैसे सम्बन्ध रख रहे हैं तो आपके सम्बन्ध बहुत ख़राब नहीं होने पाते हैं। “न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।” फिर हो सकता है आपको “यारां दे जलवे” न मिलें, कि “भाई-भाई हम तो बिलकुल जुड़वा ही हैं।” उतनी तगड़ी यारियाँ न मिलें लेकिन फिर दुश्मनियाँ और बैरियाँ भी नहीं मिलेंगी।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org