लोग क्या कहेंगे

प्रश्न: हमें पता होता है कि जो लोग हैं उन्हें हमसे कोई मतलब नहीं है, तब भी हमारे मन में ये ख़याल आ जाता है कि लोग क्या सोचेंगे। ऐसा क्यों होता है?

आचार्य प्रशांत: ये सिर्फ़ तुम्हारे नहीं, मेरे मन में भी आ जाता है। इसमें कौन-सी बड़ी बात है? हमारा जो मस्तिष्क है, वो सुविधा के लिए संस्कारित है। तो यह जो ख़याल आ रहा है, ये सामाजिक सुविधा है कि दुनिया मेरे बारे में क्या सोचेगी। और मैं तुम्हें बता रहा हूँ, कोई ऐसा नहीं है जिसे ये ख़याल नहीं आता। कोई भी नहीं है। तुम हो या मैं, सबको आता है। आने के बाद क्या हो सकता है, उसमें थोड़ा अंतर आ सकता है।

एक बन्दे को ये ख़याल आता है, और बस ख़याल ही आता है। और दूसरे बन्दे को ये ख़याल आता है, और वो इस ख़याल से लड़ता नहीं, उसे स्वीकारता है। और देख लेता है कि — अच्छा ये ख़याल आ रहा है। ठीक है?

‘मैं अपना काम कर रहा हूँ’ — यह ख़याल को देखना हो गया। मैं इस बात को भी देख रहा हूँ कि — मुझे यह ख़याल आ रहा है’। मैं इस बात को भी देख रहा हूँ कि दस लोगों के सामने पड़ते ही मैं चौक जाता हूँ, और इस बात को भी सोचने लगता हूँ कि — ‘लोग क्या कहेंगे’।

सभी को लगता है। किसको नहीं लगता?

लेकिन लगने के बाद फ़र्क होता है लोगों में।

कुछ लोग होते हैं जिनको जैसे ही ये लगा, वो वहीं रुक जाते हैं कि — लोग क्या सोचेंगे।

दूसरे होंगे, उन्हें लगेगा कि — ‘जनता क्या बोलगी,’ पर वो कहेंगे, “अच्छा, ख़याल ही तो है! ख़याल का तो काम है ये बोलना। मस्तिष्क ही तो है। मस्तिष्क और करेगा क्या? मशीन…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org