लिखनी है नयी कहानी?

मेरा एक साथी था, उसके माँ-बाप रात-दिन उसको बोलते रहते थे कि शादी कर ले। उसने एक दिन उनसे कहा, “तुम दोनों को देखता हूँ, उसके बाद भी तुम्हें लगता है कि मैं शादी कर सकता हूँ?” उसने ये बात मज़ाक में नहीं कही थी। उसने कहा, “परिणाम सामने है। अगर शादी का अर्थ ये है जो तुम दोनों मुझे रात-दिन दिखाते हो, और जैसा जीवन तुम दोनों ने जिया है, भले ही होंगे मेरे माँ -बाप, पर मुझे दिख तो रहा है कि कैसे हो, तो मुझे नहीं करनी शादी। कहाँ है प्रेम? निभा रहे हो, वो अलग बात है। निभाना प्रेम नहीं है, कर्त्तव्य पूरा करना प्रेम नहीं है। प्रेम कहाँ है? तो अगर यह शादी है तो मुझे नहीं करनी शादी।”

आँख खोलो और परिणाम देखती चलो, देखो चारों तरफ कि दुनिया कैसी है। और यही तुम्हारा भी भविष्य है, अगर बचती रहीं। यह जो सड़क पर आदमी चलता है जिसको तुम ‘आम आदमी’ बोलते हो, उसकी शक्ल ध्यान से देखो, वो तुम हो। और अगर वैसा ही हो जाना है, तो फिर कोई बात नहीं। ये जो अपार्टमेंट्स में एक के बगल एक परिवार बैठे हुए हैं, उसमें माता हैं, पिता हैं, उनके बच्चे हैं, दिन-रात की कलह है, संघर्ष है, जाओ और उनकी ज़िंदगी को ध्यान से देखो। वो तुम्हारी ज़िंदगी है, और अगर वही चाहिए, अगर वही स्वीकार्य है, तो बढ़ो आगे, किसने रोका है।

क्योंकि जा तो उसी दिशा में रहे हो, जीवन उसी दिशा में ही बढ़ रहा है और बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। बहुत समय नहीं है अब तुम्हारे पास। तुम्हारी भी कहानी अब वही सब मोड़ लेने वाली है। इच्छुक हो, तो बढ़ो आगे। बड़ी तयशुदा कहानी है, कोई उतार -चढ़ाव नहीं हैं। उस कहानी में क्या-क्या आता है बता देता हूँ। उस कहानी में आता है थोड़ी बहुत शिक्षा — कुछ सालों की, सात फेरे, मैटरनिटी वार्ड, दूध की बोतलें, घर पर बैठना, पैसे को लेकर चिक-चिक, दुनिया की देखा देखी घर को फर्नीचर से भरना, कर्ज़ लेकर मकान खरीदना, रोज़ आईने में देखना कि उम्र बढ़ रही है।

एक दिन पाना कि चेहरे पर झुर्रियाँ आ गयीं हैं, बीतते हुए जीवन की व्यर्थता देखना, और अपने आप को भुलावा देना, और जब सच साफ़-साफ़ दिखाई देने लगे तो टेलीविजन में मुँह डाल देना कि बहाना मिल जाये समय कटाने का, और जब मन बिल्कुल उदास हो तो किसी शॉपिंग मॉल में जाकर बैठ जाना ताकि लगे कि जीवन में कुछ है, ताकि लगे कि जो कमाई कर रहे हैं वो व्यर्थ नहीं है। हम इससे कमीज़ ख़रीद सकते हैं, प्रेशर कुकर खरीद सकते हैं, नए मॉडल का फ्रिज खरीद सकते हैं, नयी कार आ सकती है। ताकि जीवन को बहाने मिलते रहें आगे बढ़ने के।

तीज-त्यौहारों पर रिश्तेदारों के सामने झूठा चेहरा बनाकर के बधाईयाँ देना और पीठ पीछे हिसाब लगाना कि कितना मिला है और हमने कितना दिया है, दूसरों की ज़िन्दगी से तुलना करना। पति को देखकर यही ख़याल उठना कि कहाँ फस गयी हूँ, लेकिन फिर भी अपने आप को ऐसा बंधन में पाना कि भाग…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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