लड़ना हो तो शांत रहकर लड़ना सीखो

प्रश्न: आप कहते हैं कि शांत रहो, मौज में रहो। जब मैं देखता हूँ कि आसपास गलत हो रहा है और मुझे सही करने के लिए लड़ना भी पड़ेगा, तो वहाँ क्या मुझे लड़ाई लड़नी चाहिए, या सब कुछ परिस्थितियों के हाल पर छोड़ देना चाहिए?

आचार्य प्रशांत: जितने अशांत लोग हैं, उन सबके खिलाफ लड़ाई लड़नी है। और अशांत लोगों को देखकर मंजीत (प्रश्नकर्ता) भी अशांत हो गया है। अब मंजीत के खिलाफ लड़ाई कौन लड़ेगा? तुम कह रहे हो, “मैं शांत कैसे रहूँ जब आसपास इतना उपद्रव है?” आसपास अशांति है, उसको देखकर तुम भी अशांत हो गए, और कह रहे हो कि — “मुझे उस अशांति से लड़ना है।” तो पहले अगर दस अशांत लोग थे तो अब कितने हैं? ग्यारह। इस ग्यारहवें के खिलाफ कौन लड़ेगा?

आग में आग डालकर आग बुझाना चाहते हो? तुम्हें किसने कह दिया कि लड़ने के लिए अशांत होना ज़रूरी है?

ऐसे सैनिक से बचना जो लड़ने जा रहा हो और अशांत हो। ये किसी काम का नहीं होगा।

चुआँग त्ज़ु की कहानी सुनी है, मुर्गों की? एक मुर्गा है उसको तैयार किया जा रहा है मुर्गों की लड़ाई के लिए। मुर्ग़े एक दूसरे पर लड़ने के लिए छोड़े जाते थे, उन पर सट्टा लगता था, मनोरंजन होता था। तो उसको बढ़िया खिलाया-पिलाया जा रहा है, पँजे पैने किए जा रहे हैं।

उसका जो प्रशिक्षक है, मुख्य-प्रशिक्षक, वो देखने जाता है मुर्ग़े को। मुर्ग़े का अभी एक महीने का प्रशिक्षण हुआ है, और उसने देखा कि ये जो मुर्ग़ा है, ये दूसरे मुर्ग़ों को देखते ही फनफना कर कूदने लग जाता है। आवाज़ें मारता है। विरोधी मुर्ग़ा अगर दूर भी है तो ये ज़मीन पर चोंच मारने लग…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org