लड़की या स्त्री होने को अपनी पहचान मत बना लेना
प्रश्नकर्ता: हम जैसे अपने अभिभावकों के लिये एक बोझ की तरह होते हैं। जैसे कि आज मैं यहाँ (शिविर)पर हूँ, तो मेरे घर पर भी बहुत कुछ चल रहा है, कि क्यों मैं चली आयी, तो फिर यह एहसास करवाया जाता है कि तुम्हारी कुछ ज़िम्मेदारियाँ हैं और घर पर भी तुमको समझना चाहिए कि तुम्हारी माँ तुम्हें इन सब के लिये नहीं जाने दे सकती; मेरे पिताजी नहीं हैं, तो तुमको थोड़े कायदे से रहना चाहिए, सम्भलकर रहना चाहिए, क्योंकि समाज ऐसा है…