लक्ष्य मुक्ति का, और लालच संसार का
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दो चीज़ें अनिवार्य रूप से चाहिए।
पहला, जीवन का ईमानदारी पूर्वक अवलोकन और
दूसरा, संतों की वाणी या ग्रन्थों का साथ।
जब अपनी ज़िन्दगी को ध्यान से देखोगे तो स्वयं के जिंदगी जीने के रवैये के प्रति गहरी घृणा उठेगी। जबकि संत तुम्हें नए जीवन का मार्ग दिखलायेंगे।
यदि सिर्फ़ अवलोकन पर रुक गए तो मात्र एक असफल विद्रोही बनकर रह जाओगे। अपने ही प्रति घृणा से भर जाओगे। और यदि तुमने सिर्फ़ संतो या ग्रंथों का ही सान्निध्य प्राप्त किया और अपने जीवन का ईमानदार अवलोकन नहीं किया तो तुम ज्ञानी और पाखंडी हो जाओगे, तुम्हारा ज्ञान ही तुम्हारा जीना दुश्वार कर देगा।
तुम्हें दोनों बातें पता होनी चाहिए, तुम्हारी बीमारी क्या है? और दवा क्या है?
तब जाकर इलाज होता है।
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