रिश्ते संयोग से बनते हैं, या पूर्व-निर्धारित होते हैं?

प्रश्न: आचार्य जी, लोग मिलते हैं, फ़िर उन्हीं से रिश्ते बन जाते हैं। क्या यह भाग्य है?

आचार्य प्रशांत: ये भाग्य नहीं है। मन तो पचास जगह रिश्ता बनाता है। वो सब रिश्ते, मन के खेल हैं, मन की प्यास हैं; समय के संयोग हैं। डेस्टिनी (क़िस्मत) होती है वो आख़िरी रिश्ता, जिसके बाद और कोई रिश्ता चाहिए ही नहीं। डेस्टिनी (क़िस्मत) का अर्थ होता है — अंत, डेस्टिनेशन(गंतव्य)। अंत — जाकर के…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org