रिवॉल्वर बचाकर रखो, असली दुश्मन दूसरा है
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प्रश्न: आचार्य जी, जीवन की छोटी-छोटी बातों में भी भ्रमित रहता हूँ कि क्या करना उचित है और क्या अनुचित।
आचार्य प्रशांत: एक फ़िल्म देखी थी मैंने। उसमें समझ ही में न आए कि नायक इतना पिट क्यों रहा है। पिक्चर का क्लाइमेक्स है, चरम पर पहुँच चुकी है। दुश्मनों के गढ़ में घुसा हुआ है हमारा नायक, और उसके हाथ में रिवॉलवर भी है। और लोग आ रहे हैं, उसको पीट रहे हैं; वो उनका मुकाबला भी कर रहा है तो खाली हाथ। वो उसको तरह-तरह के हथियारों से मार रहे हैं; वो उनका मुकाबला भी कर रहा है तो निहत्था होकर के। जबकि उसकी जेब में रिवॉल्वर है। वो भरसक कोशिश ये कर रहा है कि बचा लूँ अपने-आपको। जितना कम-से-कम लड़ना पड़े, उतनी कम-से-कम लड़ाई कर रहा है। हालांकि, दूसरे पक्ष के लोग उससे उलझने को बड़े आमादा हैं। वो तो चाहते ही हैं कि उसको रोक लें। वो रुकना नहीं चाह रहा।
जब तक वो पिट रहा था तब तक भी बात बर्दाश्त के भीतर थी। एक दृश्य आता है जिसमें उसको गोली ही मार देते हैं। उसको गोली मार देते हैं, वो फिर भी रिवॉलवर बाहर नहीं निकाल रहा है। वो किसी तरीक़े से अपने-आपको बचाए-बचाए आगे बढ़ रहा है; उसे दुश्मन के दुर्ग के शिखर तक पहुँचना है। वो बढ़ता ही जा रहा है, पिटता जा रहा है, गोली खाता जा रहा है, और आगे बढ़ता जा रहा है। और ये बात बड़ी विचित्र लग रही है कि — ये इतना कम विरोध क्यों कर रहा है? ये जो लोग इसको मार रहे हैं, घायल कर रहे हैं, ये भी उनको घायल क्यों नहीं कर देता? और नायक है भई हमारा। बाहुबल भी है उसमें और रिवॉल्वर बल भी है। पर ये दिखाई दे रहा है कि वो कम-से-कम विरोध करते हुए, कम-से-कम उलझते हुए सीधा आगे बढ़ रहा है। कई गोलियाँ खा लेता है वो।
अंततः वो जो प्रति नायक है, खलनायक है, जो चीफ विलेन है, उस तक जा पहुँचता है। फिर वो अपना रिवॉल्वर निकालता है, कैमरा रिवॉल्वर की मैगज़ीन पर ज़ूम करता है, और पता चलता है कि उसके पास गोली बस एक थी। और वो प्रमुख खलनायक के माथे पर, कनपटी पर लगाकर के गोली दाग देता है।
उसने किसी से उलझना बर्दाश्त ही नहीं किया, क्योंकि उसके पास गोली एक है, और उसको पता है कि उस गोली का इस्तेमाल कहाँ करना है, और कहाँ वो उस गोली का इस्तेमाल करेगा ही नहीं। बाकी जगहों पर उलझना भी पड़ा, तो अपनी न्यूनतम ऊर्जा व्यय करेगा, कम-से-कम उलझेगा क्योंकि उसे आगे बढ़ना है। उसे पता है कि असली दुश्मन कौन है; बाकियों को तो जानता है कि गुर्गे हैं, प्यादे हैं। इनसे उलझ कर क्या मिलेगा? मूर्ख होते हैं जो प्यादों से उलझते हैं।
रिवॉलवर बचाकर रखो, असली दुश्मन दूसरा है। गोली एक ही है तुम्हारे पास, उसको ज़ाया मत करो, बर्बाद मत करो। और जो असली दुश्मन है, वो तो ये चाहता ही है कि तुम अपनी ऊर्जा को, अपने अस्त्र…