राष्ट्रवाद: वेदांत के ज्ञान से सेना के सम्मान तक

जो भी दो लोग लड़ रहे होंगे वो हमेशा अपनी लड़ाई को कोई सुसज्जित नाम ज़रूर देंगे।

उन नामों से बहक मत जाना!

वो कह देंगे, साहब! यह उत्तर-दक्षिण की लड़ाई है, यह काले-गोरे की लड़ाई है, यह स्त्री-पुरुष की लड़ाई है, यह हिंदू-मुसलमान की लड़ाई है, ऊँची जाति और निचली जाति की लड़ाई है।

लड़ाइयाँ सिर्फ एक आधार पर होती हैं — आदमी के भीतर हिंसा है, वैमनस्य है, द्वेष है, प्रेम नहीं है, करुणा नहीं है, समझदारी नहीं है, शांति नहीं है। इसलिए लड़ाइयों को रोकने का तरीका है आदमी के अहंकार को चैन दे दो, शांति दे दो। उसके अलावा कोई और तरीका नहीं। जब तक तुम वह काम नहीं करोगे हर स्तर पर क्लेश, कलह और युद्ध होते ही रहेंगे।

जब किसी बड़े स्तर पर फौजें लड़ जाती हैं तो तुम बोलते हो युद्ध हो गया, घर में मियाँ-बीवी लड़ जाते हैं वह युद्ध नहीं है क्या?

और आदमी के भीतर ही यह जो अंतर-कलह चलती रहती है, जो आदमी अपने ही भीतर बुरी तरह से बँटा हुआ है वह युद्ध नहीं है क्या?

यह आदमी के भीतर का अंधेरा है जो उससे तमाम तरह के कुकर्म कराता है।

लेकिन तुम आदमी के अंधेरे की बात नहीं करना चाहते क्योंकि आदमी का अंधेरा ही आदमी का अहंकार है, अंधेरे की बात करो तो अहंकार को चोट लगती है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org