राम से राम तक की यात्रा है जीवन

प्रश्नकर्ता: प्रिय आचार्य जी, प्रणाम! गीता का पाठ संभव कर देने के लिए धन्यवाद। अध्याय ७, १३ और १५ में श्रीकृष्ण प्रकृति, दो प्रकार के पुरुष, और पुरुषोत्तम के बारे में बताते हैं और कबीर साहब ने चार रामों की बात कही है-

चार राम हैं जगत में, तीन राम व्यवहार।

चौथ राम सो सार हैं, ताको करो विचार॥

एक राम दसरथ घर डोले, एक राम घट-घट में बोले।

एक राम का सकल पसारा, एक राम है सबसे न्यारा॥

~ संत कबीर

क्या कबीर साहब के चार राम और गीता के प्रकृति, दो पुरुष और पुरुषोत्तम एक ही हैं? और क्या ये जीवन पहले राम से आख़िरी राम तक की यात्रा है? कबीर साहब चौथे राम का विचार करने की बात कर रहे हैं परंतु खुद को लगातार देख पाने की कोशिश में ही सारी ऊर्जा निकल रही है।

सप्रेम धन्यवाद!

आचार्य प्रशांत: दो प्रकार के जिन पुरुषों की बात कर रहे हैं श्रीकृष्ण १५वें अध्याय में उनमें से एक पुरुषोत्तम ही है और दूसरा वो जिसको आप जीवात्मा कहते हैं। तो आपने चार राम के समकक्ष चार इकाइयाँ रखने का प्रयत्न करा है। आपकी चार इकाइयाँ हैं- प्रकृति, दो पुरुष और पुरुषोत्तम पर ये चार इकाइयाँ चार तो पहले ही नहीं है क्योंकि ये जो दो पुरुष हैं उनमें से एक पुरुषोत्तम है ही। पुरुषोत्तम माने आत्मा, सत्य। तो ये रह गये तीन तो प्रकृति, जीवात्मा और आत्मा और ये हैं आपके चार राम। ये क्या हैं? इनको समझ लीजिए-

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org