राम — निराकार भी, साकार भी
7 min readMar 30
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आचार्य प्रशांत: मन को अगर कुछ भाएगा नहीं तो मन जाने के लिए, हटने के लिए तैयार नहीं होगा। मन हटता ही तभी है जब उसे ऐसा कोई मिल जाता है जो एक सेतु की तरह हो: मन के भीतर भी हो, मन उसे जान भी पाए, मन उसकी प्रशंसा भी कर पाए और दूसरे छोर पर वो कहीं ऐसी जगह हो जहाँ मन अन्यथा न जा पाता हो। अब ऐसे में अवतारों का, राम का, कृष्ण का महत्व आ जाता है। एक तरफ़ तो वो व्यक्ति हैं, और उनकी जीवनी, उनकी कहानी, उनका आचरण ऐसा है जो मन को भाता है, मीठा लगता है…