‘राम खुमारी’ का अर्थ

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, ओशो कहते हैं, “धर्म का सार है- राम खुमारी।” ‘राम खुमारी’ क्या है? कृपया प्रकाश डालने की अनुकम्पा करें।

आचार्य प्रशांत: तुम जिसे आमतौर पर होश कहते हो, जब समझ उठती है तो ये होश डगमगाने लगता है। ये झूठा होश है। कुछ वैसा-सा ही मज़ा आने लगता है जैसे शराबियों को आता है। हालांकि उनसे बहुत उन्नत मज़ा ,उनसे बहुत अग्रणी मज़ा पर जैसे एक शराबी होश की सामान्य अवस्था से हट जाता है वैसे ही जिसको समझ उठती है वो भी होश जी सामान्य अवस्था से हट जाता है इसको कहते हैं- राम खुमारी। जो जान जाते हैं वो कुछ-कुछ वैसा ही चलते हैं जैसे शराबी चलते हैं, पर कुछ-कुछ। बहुत बड़ा अंतर है पर कुछ बातें समान होती हैं। जैसे शराबी बहुत परवाह नहीं करता कि लोग क्या कहेंगे? देखा है शराब पी के धुत्त चला जा रहा है। कोई इधर से कुछ कह रहा हो, कोई उधर से कुछ कह रहा हो शराबी चला जा रहा है। वैसे हीं संत भी परवाह नहीं करता कि लोग क्या कहेंगे? तो समानता है।

शराबी को रोक सकते हो? वो कुछ भी कर के शराब तक पहुँच जाता है? वैसे ही तुम भक्त को भी रोक नहीं सकते हो वो कुछ भी कर के भगवान तक पहुँच जाता है तो थोड़ी समानता है। शराबी भी बहकी-बहकी बातें करता है और ज्ञानी की बातें भी लोगों को बहकी-बहकी लगती हैं। थोड़ी समानता है। इसीलिए ज्ञान की, विशेषकर भक्ति की स्थिति को खुमारी कहा गया है। खुमारी तो है ही। कल तक तुम बोलते थे मैं राज हूँ आज बोलना शुरू कर दो- “मैं ब्रह्म हूँ” तो लोग तो यही कहेंगे न कि ये टुन्न है। खुमारी तो है ही।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org