राम का भय ही पार लगाएगा

रामहि डरु करु राम सों ममता प्रीति प्रतीति।
तुलसी निरुपधि राम को भएँ हारेहूँ जीति।।
~ संत तुलसीदास
आचार्य प्रशांत: ध्यान देना होगा! कुछ ऐसा है यहाँ पर जो आपको चौंका सकता है।
राम से ही डरो! हो राम से ही ममता-प्रीत और राम ही हों सर्वत्र प्रतीत। तुलसी निरुपधि राम, निरुपाधि राम, निर्गुण राम को भय, हारहुँ जीत।