राम का इतना गहरा विरोध?
प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, दिवाली के अवसर पर देशभर से लोग यहाँ पर आपके साथ दीवाली मनाने के लिए उपस्थित हैं। उन्होंने अपने प्रश्न भेजे हैं। पहला प्रश्न है- प्रणाम आचार्य जी, कलयुग में रावण के मोक्ष का मार्ग क्या है? त्रेता में हरि के हाथों मृत्यु पाकर रावण पार हो गये थे। वर्तमान में तो हरि के हाथों मृत्यु संभव नहीं है, तो क्या मार्ग है?
आचार्य प्रशांत: जो जिस स्थिति में होता है, उसे उसी स्थिति के अनुसार, उस स्थिति से बाहर जाने वाला मार्ग ढूंढ लेना होता है। दो बातें कहीं है एक साथ- पहली, आप जिस भी स्थिति में हैं, जो भी हालत है आपकी और माहौल है, आपको अपना रास्ता उसी के अनुसार ढूंढना होगा और जब मैंने ये कहा है तो ये नहीं है आशय कि जो आप रास्ता ढूँढें वो आपकी स्थिति के अनुसार इस तरीक़े से कि आपको वो स्थिति में बनाये ही रखे।
स्थिति के अनुसार ढूंढना है रास्ता लेकिन स्थिति से बाहर ले जाने वाला ढूंढना है रास्ता। नहीं समझे? स्थिति के अनुसार ढूंढना है रास्ता लेकिन स्थिति से बाहर ले जाने वाला ढूंढना है रास्ता।
मछली हैं आप, और मुंबई से चेन्नई जाना है तो कैसे जाएँगे? तैर के भई! क्योंकि और कुछ आप जानते ही नहीं। तो आप जो जानते हैं उसी तरीके का आपको प्रयोग करना पड़ेगा। अनिवार्यता है और क्या करेंगे? और क्या करेंगे? और पक्षी हैं आप और जाना चेन्नई हीं है मुंबई से। तो कैसे जाएँगे? उड़ के। तो आप जो कुछ हैं उसी के अनुसार कोई उपाय ढूंढ लीजिए लेकिन पहुँचना तो जरूरी है। पहुँचना तो पड़ेगा ही। ये नहीं कह सकती मछली कि "मैं क्या करूँ मुझे उड़ना नहीं आता?" और ये नहीं कह सकता पक्षी "मैं क्या करूँ मुझे तैरना नहीं आता?" लाचारी की दुहाई नहीं दीजियेगा जो आपको आता है, जो आपके लिये सम्भव है, उसी का पूरा इस्तेमाल करिये लेकिन पहुँचना तो हैं ही। जहाँ…