रात, शहर और मैं
आकाश,
टुकड़ों में मेघाच्छन्न है
या तो पूरी तरह
या बिल्कुल नहीं।
खुले आकाश का सबसे चमकदार सितारा
मेघों को दूर से निहारता है
जैसे पड़ोस का बच्चा मुझको-
भय, संदेह से व्याकुल आँखों से,
कुछ दूरी पर खड़े रहकर।
आषाढ़ के काले बादलों का छोर
बस उनके पीछे चमकती बिजली
ही दिखा पाती है ।
वातावरण के सन्नाटे को
सन्नाटा नहीं रहने देती
अन्दर से आती कूलर की ध्वनि,
झींगुरों का शोर (सदा की तरह)
कुत्तों की चीखपुकार,
बादलों की गड़गड़ाहट
और हाइवे से आती ट्रकों की आवाज़ें ।
हवा की गति अच्छी है,
गमले में लगा गुलाब झूमता हुआ अच्छा लगता है,
छत पर छिटके पॉलिथीन व काग़ज़
हवा चलने पर दौड़-भाग मचाते हैं,
और मेरे पाँव पर जमे मच्छर
हवा तेज़ चलने पर उड़ जाते हैं ।
रात बहुत काली है,
चंद्रमा का कोई पता ठिकाना नहीं,
पर इतनी काली नहीं कि