ये है शरीर की औकात

सबको महीने-दो महीने में एक-आध बार मरघट का चक्कर लगाना चाहिए। भई घर है अपना। जाओगे नहीं देखने? क्या हालचाल है, संगी-साथी कैसे हैं? कोई दिक़्क़त तो नहीं है? वही घर है! बड़े इज़्ज़तदार बनते हैं।

पर ये बातें हमने छुपा रखी हैं। और ये बड़ी आम बातें हैं, पर हम उनको दबाए रहते हैं, उनपर पर्दा डाले रहते हैं। खुलेआम बात किया करिए। कोई बहुत पीछे पड़ा हो कि — “चलो, चलो कहीं मिलते हैं, चैट (बातचीत) करते तो बहुत दिन हो गए, अब मिलना भी तो चाहिए,” तो…

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रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

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