ये हमारा जीवन है, हम सब यही करते हैं!

हमें रोग में रहना स्वीकार है, उपचार हमारे लिए रोग से बड़ी यंत्रणा मालूम होता है। हम कहते हैं, “रोग छोटा कष्ट है क्योंकि उसके अभ्यस्त हो गए हैं”। उपचार भले ही छोटा कष्ट हो पर वो बड़ा कष्ट है क्योंकि वो अनजान कष्ट होगा।

हम उससे परिचित नहीं, तो हम तो जानी हुई विपत्ति को चुनेंगे भले ही वो बड़ी विपत्ति क्यों न हो। हम रोज़-रोज़ मरना स्वीकार कर लेते हैं। मैं जिस मरने कि बात कर रहा हूँ वो है चेतना का ह्रास, वो है मन पर आघात, वो है जीवन की रुग्णता, हमें वो स्वीकार है, तिल-तिल कर, घुट-घुट कर मरना स्वीकार है।

पर जीवन का विस्फोट हमें भयावह लगता है।

हम कहते हैं इतना सारा जीवन?
हम कैसे संभाल पाएँगे?

नया होगा, हमारे वश से बाहर का होगा।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org