ये लोरी सुनकर जगेगा भारत

ऐसा नहीं है कि सब लोग अंग्रेज़ी ही माँग रहे हैं या भारतीयों में अंग्रेज़ी के प्रति कोई ज़बरदस्त हार्दिक आकर्षण है। सब अभिभावक भागते हैं इंग्लिश स्कूलों की ओर तो इसके पीछे एक कृत्रिम, आर्टिफिशियल कारण है। वो कारण बनाया गया है, तैयार किया गया है, वो कारण बहुत सीधा है- भारत में जितनी भी क्षेत्रीय भाषाएँ हैं और हिंदी, इनको रोज़गार से काट दिया गया है।

अब भाषायी महत्व या गौरव अपनी जगह होता है, बड़ी बात होती है। लेकिन रोज़गार, पेट और रोटी उससे थोड़ी बड़ी बात हो जाते हैं। मातृभाषा, चाहे वो हिंदी हो या कोई और क्षेत्रीय भाषा हो, इनमें शिक्षा के बहुत फायदे हैं और वह फायदे सबको पता हैं।

मातृभाषा में अगर आपकी पढ़ाई हो रही है तो आप जल्दी सीखते हैं, मातृभाषा में अगर आप पढ़ रहे हैं तो आप पर बोझ, तनाव कम आता है, मातृभाषा में अगर आप पढ़ रहे हैं तो स्कूल में भी जो पास प्रतिशत होता है, उत्तीर्ण होने वाले छात्रों का, वो बेहतर रहता है, मातृभाषा में अगर आप पढ़ रहे हैं तो घर पर अभिभावक आपकी(बच्चे की) बेहतर सहायता कर सकते हैं और अगर मातृभाषा में आप पढ़ रहें है तो जो ‘ड्रॉपआउट रेट’ होता है, माने स्कूल को, शिक्षा को छोड़ देने वाले छात्रों का अनुपात, वो कम हो जाता है।

भारत में समस्या यही नहीं रही है कि जो एनरोलमेंट रेट, दाख़िला लेने वाले छात्रों का अनुपात है वो कम रहा है। भारत में एक बड़ी समस्या यह भी रही है कि बच्चे दाख़िला तो ले लेते हैं लेकिन फिर वो धीरे-धीरे करके स्कूल छोड़ने लग जाते हैं, ड्रॉपआउट करने लग जाते हैं। जब मातृभाषा में शिक्षा होती है तो उससे ड्रॉपआउट रेट को भी कम…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org