ये बनना, बिगड़ना, और बदलते रहना
4 min readDec 14, 2020
--
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपके शब्द कभी पत्थर की तरह लगे, कुछ टूटा भीतर, किसी को गुस्सा आया। लेकिन आपसे दूर भागने के बजाय, और सुनने का मन कर रहा है। और टूटने का मन कर रहा है। ऐसा लगा जैसे टूटने से शांति मिल रही है। जो टूटा, वो कब बना, पता नहीं चलता।
ये बनना-टूटना कब ख़त्म होगा?
आचार्य प्रशांत: आपको क्या करना है ख़त्म वगैरह करके? जो चल रहा है, चलने दीजिए। जो चल रहा है, चलने दीजिए। बनता है…