ये बनना, बिगड़ना, और बदलते रहना

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपके शब्द कभी पत्थर की तरह लगे, कुछ टूटा भीतर, किसी को गुस्सा आया। लेकिन आपसे दूर भागने के बजाय, और सुनने का मन कर रहा है। और टूटने का मन कर रहा है। ऐसा लगा जैसे टूटने से शांति मिल रही है। जो टूटा, वो कब बना, पता नहीं चलता।

ये बनना-टूटना कब ख़त्म होगा?

आचार्य प्रशांत: आपको क्या करना है ख़त्म वगैरह करके? जो चल रहा है, चलने दीजिए। जो चल रहा है, चलने दीजिए। बनता है तो मौज, टूटता है तो मौज। जिसे बनना है वो बनता रहेगा, जिसे टूटना है वो टूटता रहेगा। आप कुछ भी अपने ऊपर अनिवार्य मत कर लीजिए।

जो कुछ भी आप अपने ऊपर अनिवार्य कर लेंगे, वो ही फालतू बंधन बन जाएगा। आप कहेंगे, “बनना बुरा,” तो लो आ गया ना बंधन। क्या? कि अब जीवन भर जो बनता हो, उसके विरोध में खड़े रहो। आप कहोगे, “टूटना बुरा,” तो लो आ गया ना बंधन। क्या? कि जहाँ कुछ टूटता देखो, वहाँ उसे टूटने से रोको। आप कहोगे, “टूटना अच्छा,” लो आ गया ना बंधन। क्या? कि जो कुछ भी अनटूटा मिले, तुम हथौड़ा लेकर उसे तोड़ने में लगे रहो। आ गया ना बंधन?

अरे! जो बने सो बने, जो टूटे सो टूटे, आपको क्या करना है? आपका क्या लेना-देना? ना आप बनने वाली चीज़ हो, ना आप टूटने वाली शय हो। आप क्या हो, इससे भी आपका क्या लेना-देना? इतना काफ़ी है कि बनना-टूटना आपके पहले भी था, आपके बाद भी है। और आपके पहले कभी कुछ था नहीं, और आपके बाद कभी कुछ होगा नहीं।

और ये सारी बातें मैं आपको भ्रमित करने के लिए ही बोल रहा हूँ, ताकि आपके दिमाग से ये बात ही निकल जाए कि कुछ बन रहा है…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org