ये पागल इच्छाएँ

आचार्य प्रशांत: लोग पूछते हैं, “अध्यात्म की ज़रूरत क्या है?”

तुम अगर आध्यात्मिक नहीं हो तो ऐसा नहीं है कि तुम्हारे साथ कुछ अच्छा घटेगा, कुछ बुरा घटेगा। हमारे साथ जो तय है होना, जो डिफ़ॉल्ट (अकारण) है, वो प्राकृतिक है; और वो हमारे लिए अच्छा नहीं है। ये बात बिलकुल अच्छे तरीके से समझ लो, सीने में जमा लो। तुम अगर होश में नहीं हो तो भी तुम्हारी ज़िंदगी की गाड़ी तो चलेगी ही, क्योंकि प्रकृति का काम है चलना; तो तुम्हारी गाड़ी रुकने नहीं वाली। वो तुम्हारे होश का इंतज़ार नहीं करेगी; तुम होश में हो, तुम बेहोश हो, तुम ब्रह्मज्ञानी हो, तुम अज्ञानी हो; गाड़ी तो चलेगी ही। कैसे चलेगी? धक्के खा-खाकर, ठोकरें खा-खाकर चलेगी।

हमारी सड़कों पर जो गाड़ियाँ चलती हैं वो तो फिर भी कम अभागी होती हैं, उनको एक बार ज़ोर की टक्कर लग जाएगी तो वो वहीं पर रुक जाती हैं, है न? गाड़ी है, बेहोश चली जा रही है, जाकर किसी पेड़ से भिड़ गई। चलो जो हुआ सो हुआ; गाड़ी को चोट लगी, जो भीतर बैठा था उसको चोट लगी, हो सकता है भीतर बैठने वाले की मृत्यु ही हो गई हो। पर जो भी हुआ, गाड़ी के चोट खाने का सिलसिला यहीं पर रुक गया। आदमी की दुर्दशा और गहरी है; हमारी ज़िंदगी की गाड़ी को रुकने की तो अनुमति ही नहीं है, वो चलती रहती है। एक पेड़ से भिड़ेगी, फिर दूसरे पेड़ से भिड़ेगी, तीसरे पेड़ से भिड़ेगी। कोई रहम नहीं करने वाला, कि, “इसने ज़िंदगी में बहुत ठोकरें खालीं, अब कृपया इसे ठोकरें न दी जाएँ।“ न; यही बदा हुआ है, यही लिखा हुआ है: गाड़ी चलती रहेगी, गाड़ी पिटती रहेगी, गाड़ी चलती रहेगी, पिटती रहेगी; क्योंकि प्रतिपल जीवन में तुम्हें क्या करने हैं? चुनाव।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org