ये खास सीख छुपी है मौत के डर में [भागो मत, कुछ सीखोगे]

ये खास सीख छुपी है मौत के डर में [भागो मत, कुछ सीखोगे]

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी! आचार्य जी, मैं बचपन से ही ऐसे माहौल में रहा कि पापा से बहुत डर लगता था। पापा बहुत मारते-पीटते थे। चाचा भी बहुत मारते-पीटते थे। तो बहुत डर लगता था। फिर कॉलेज चला गया। कॉलेज में ऐसा था कि हम एक ग्रुप में रहते थे, हॉस्टल में रहते थे, काफ़ी लोगों का ग्रुप था। तो मैं अब देखता हूँ कि जैसे कभी लड़ाई-वड़ाई हो जाती थी तो साथ भी जाते थे, सब चीज़ें होती थीं, तो वहाँ पर भी डर मौजूद था।

फिर एक घटना घटी थी मेरे साथ कि मैं कोई डॉक्टर के पास गया — बीमार हुआ — तो उसने बोला, ‘आपको कैंसर हो सकता है। उसने सीधा नहीं बोला, उसने हाव-भाव ऐसा दिखाया मुझे कि कोई गंभीर गड़बड़ी है। आचार्य जी, उस बात ने मुझे इतना अंदर से हिला दिया कि मैंने वो कॉलेज छोड़ दिया और घर आ गया कि मैं बी.एड. करूँगा। मेरा मास्टर्स का प्लान था और राजस्थान को टॉप किया था मैंने फिज़िक्स (भौतिक विज्ञान) में।

अभी मैं लेक्चरर हूँ फिज़िक्स (भौतिक विज्ञान) का गवर्मेंट ऑफ़ राजस्थान (राजस्थान सरकार) में। पर वो जो डर है, वो इतना घर कर गया है अंदर कि किसी आदमी से हम सहज बात नहीं कर पाता। जैसे आपसे बात कर रहा हूँ।

कभी दुकान पर जाते हैं तो दुकानदार से जो बात कहनी होती है, वो भी नहीं कह पाते सहज रूप से। पर वो थोड़ी देर के लिए रहता है। जब थोड़ी देर बात हो जाए फिर चीज़ें सामान्य हो जाती हैं; लेकिन फिर जैसे ही अकेला होता हूँ फिर मुझे ये पता चलता है कि डरा हुआ तो था उस समय। वो क्या बात थी?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org